पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२४१

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२२६ संत-काव्य अन्ना भगत बालाजी की कुछ पंक्तियों के अनुसार जान पड़ता है कि उनके पहले नामदेव, कबीर, रविदास एवं सेन नई नामक संतों का आवि भव हो चुका था औरउनके महत्व एवं त्याग की कथाओं से प्रभावित होकर ही, इन्होंने भी भक्निसाधना के क्षेत्र में पदार्पण किया था । कवीर, सेन नाई, रविदास तथा पीपाजी की भाँति इनकी भी गणना स्वामी रामानंद के शिष्यों में की जाती है । इन्का जन्मस्थान राज- स्थान के टांक इलाके का अन गाँव समझा जाता। है और इनकी जाप्ति कृषि व्यवसायोपजीवी जाटों की कही जाती है। मेकालिफ साहब ने इन जन्म का संद १४७२ ठाया है जो कुछ पहले जाप्ता हुआ जान पड़ता । है । सभी बातों पर विचार कर ले पर ये बिक्रम की सोलहवीं शताब्दी के प्रथम व द्वितीय चरण से पहले के नहों ठह रले और ये एक भोली बुद्धि के किसान समझ पड़ते हैं । इनके संबंध में अनेक चमत्कापूर्ण कथाएं प्रसिद्ध है जिनमें से एक के अनुर सा इन्होंने भगवान की मूर्ति को इठात् भोजन कराया था और एक दूसरी के अनुसार इन्होंने, एक वार, खेत में डालने के लिए सुरक्षित गेहूं के बीज को अपने घर आये हुए हरिभक्तों को खिला दिया था और अपने पिता के क्रुद्ध होने के भय से खेत में जाकर ये योंही हुल चला आए थे। 'भक्तमाल' के रचयिता नाभादास का कहना है कि इनके भजन का प्रभाव ऐसा था कि उस खेत में बिना बोये ही बीज उग आये और उसकी फसल भी बहुत अच्छी हुई । सिक्खों के 'अवदिप्रंथ, में इनके केवल चार पद संगृहीत हैं जो ‘धनासरीएवं आसा’ नामक रागों के अंतर्गत दिये गए हैं। इन रच- नाओं में इनके आध्यात्मिक जीवन एवं गास्थ्य जीवन के आद की एक अच्छी झलक मिलती है ' इन्हें भगवान् की दयालुता में पूर्ण विश्वास है और इनका हृदय अत्यंत सरल, शुद्ध एवं छलरहित है ।