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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२४८

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संयु पूर्ट्सि ) २३५ में भी पाचे बने हैं इनक्री मृन्यू ८८ वर्ष की अवस्था में हुई थी। । संन जंभाजी ा जंभनाथ की केवल फुटकर रचनाएं ही मिलती हैं उनमें वस्तृतः देहभेद, योगाभ्यमऋयासिद्धि जैसे विषय ही और अधिकतर पाये जाने में उनको शब्दवलो भी नायसाहित्य के ही नer परिभाषि नों से अधिक मिलनो-जुलती है : गहन पड़ता है कि ये मंतमत के अनुयायी होने पर भी अपने नाथपंथी पूर्व संस्कारों का पूर्ण परित्याग नहीं कर पाये थे । पद साधना अजपा जपोते प्रब, अजपा जपो । पूजो देव निरंजन थान ।। गगन मंडल में जोति लब : देव बरो व वा ध्यान् ।। मोह न बंघन सन परवधत । शिक्षा से ग्यान विचार ।। पंव सावत कर सकसो र।ख्या है तो यों उत्तर बा पार १। एं .. .रहा -पंचैदियों को वश में लाकर उन्हें सील तथा संयत रखा। द साखी बही अपार सरूम तू, लहरी इंद्र घनेस । मिश्र बरुन और आरजमाअदिती पुत्र दिनेस 1 १। तु सरवश्य अ नाद आ , रवि सम क रत प्रवास । एक ५१द में सकल जग, निसदिम करत निबॉस १२? । इस अपार संसार में, किस बिध उत पार। अमन्य संगत में आपका, निश्चल लेह उबार 1३। अरजमा==र्णमा, सूर्य लह=पनी मज बा लीला के अनु सार करम चला। गुरु नानक देव गुरु नानकदेय का जन्म से - १५२६ के बैशाख मास शुक्लप) की तृतीया को रा इभोई की तलवंडी नामक गाँव में हुआ था । । यह गाँव वर्तमान लाहौर नगर के दक्षिणपश्चिम, लगभग तोस मील की दूरो