पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२४९

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२३६ संत-कडेिय पर बसा हुआ । है और ‘नानकाना' के नाम से प्रसिद्ध है । कहते हैं कि इस भूभाग के इर्दगिर्द पहले एक घना जंगल था और बालक नन को इसमें 6 मना बहुत पसंद था। ये उसमें एकांत पाकर बहुधा घंटों बैठे कुछ न कुछ सोचा करते थे और अपने चितनके फल स्वरूप शांत भाव से रहा करते थे ! इन्हें बचपन में पंजाबी, हिंदी, संस्कृत एवं फ़ारसी की शिक्षा दी गईकिंतु पुस्तकों से कहीं अधिक इन्हें एकांत वात और विचार करने का अभ्यास ही प्रिंथ रहा। कुछ लोगों का अनु मान है कि ऐसे ही किसी अवसर पर इन्हें कुछ उच्चकोटि के महात्मा भी मिल गए होंगे जिनके उपदेशों से प्रभावित होकर इन्होंने आध्यात्मिक बातों के मनन की ओर विशेष रूप से ध्यान दिया होगा। जो हो, इनकी इस प्रकार की प्रवृत्ति से आशंकित होकर इनके पिता ने इन्हें किसी कारोबार म लगाना चाहा, कितु की। सफ्लत नहीं मिली । और ये अपनी में तक भी नहीं चरा सके ! फिर भी, अपनी बहन का विवाह हो जाने पर वे उसके घर चले गए और अपने बहनोई की सत्यता से इन्होंने वहीं मोदीखाने में नौकरी कर ली । तब तक इनका विवाह भी हो गया था और कुछ दिनों में इन्हें दो पुत्र हो गए। थे । परन्तु मोदीखाने में, एक दिन आटा तौलते समय, ये अपने पूर्व संस्कारानुसार तरादू का क्रम गिनते समय ‘तेरह ' को बड़ी देर तक तेरा’ ‘गो’ कहनें ी चले गए और इस प्रकार, भावावेश के कारण इन्होंने उचित से कहीं अधिक आटा दे डाला। फलतः इनके मालिकों ने रुष्ट होकर इन्हें नौकरी से बाहर कर दिया और ये विरक्त होकर देशभ्रमण के लिए निकल पड़े । इन्होंने अपनी वेशभूषा में भी बहुत कुछ परिवर्तन कर लिया और अपने एक साथी मर्दाना नामक मुस लमान को अपने साथ ले लिया । ये पहले पूर्व की ओर चले और सयदपुर, कुरुक्षेत्रहरिद्वार आदि तक हो आए । फिर क्रमश: दक्षिण "श्चिम एवं उत्तर भी जाते रहे । ये घूमते समय मार्ग में पड़ने वाले