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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२५३

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२४० संतकय 1 में स्नान करा कर सारे तीर्षों का फल पा जाता है और उससे उपदेश रत्न भोपा लेता है । अठसठितीरथ=६८ प्रधान तीर्थ । सरुसर, जलाशय। ताखसक लिए। इले. .. नावपूर्ण प्रवेश कर लेने पर। तसही- यह्दय में । बनासपतिबह पौधा था वृक्ष थिसका फू ल प्रत्यक्ष न हो। सउद्दे =मन सतगुरु का कार्य (४) सतिगुर मिले मरए दिखाए। मरण रह्यण रसु अंतरि भाए। मंडु निवारि गगन पुरु पए ११५ सरए लिखाइया ए नहीं रहणा । हत्रि जर्षि जाप रह हरि सरण ५रहाउस सतिगुरु मिले त दुविधा भागे । कमलु विगालि मनु हरि प्रग सागे, जबलू मरें महा र आगे है२। । सलिगुरि मिल सच संजमि सूचा । गुरकी पउड़ी ऊंचे ऊंचा। करमि मिले जमका भड मूचा ।। गुरि मिलि६ मिलि अंकि समइआ । करि किरप धर सहलु बिखाइआ। नानक हड से मार्सीि मिलाइअर 1१४१। सरण रहण र-मर कर जोने का रहस्य। अंतरि भtए=भीतर पसंद आया। एनहो=इधर हो, यही । जोबनु मरे =सांसारिक जीवन का अंत हो जाय। पउड़ी=पौरीड्योढ़ी। करमि=करमकृपा। वा= । जाता रहा। परमात्मा ही सब कुछ . (५) प्रापे रसीओ श्रषि रसूश्राप रावण हारु । अपे होने चोलड़ाआपे सेज भताह 12 १। रंगिरता मेरा साहिब, रवि रहिया भरपूरि ।रहा। आापे माछी मथुलो, आपे पाइपी जालु । आपे जाल मणकताआप अंदरि लालू 1२॥