पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२५८

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तनु मध्ययुग (पूर्वार्द्ध) आपने यदि ाइन थानि सुहाइश कारज सबदि सवारे । गिनास महारतु नेत्री अंज त्रिभवण रू9 दिखाइ आ । सली सिलहू रसि संगल साहु इस घदिर सजन आइआ ।२है। मन तन अंत्रुिति भिना। अंतरि प्रेम रतन' । अंतरि रतन पदारभु मेरे, परम ततु बीचारो। जंत भेख तू सकल दाता, सिरि सिरि देवण हारो । तू ज इस गिआनी अंतरजामी आपे कारण कोना। सुनहु सखी मनु मोहनि भोहिथा, सलु मनु अंत्रितु भीना ।३।। अतमा राम संसारा । सांचा क्षेतु तुम्हारा। संधु फल तुम्हारा अगर अयारासुधु बिनु कउणु बुझाए । सिध साबिक सियारों केतेतुझ बि कवए कहाए । काल, बिश्ना, आए देवी, , राखिआ गुरि ठाए । नांनक बगण सब दि जलाए हु ण संगमि प्रभ पाए ५४। साई=वास्तविक है सोहिल्लड़ा-मांगलिक गीत। थानि==स्थान। सवारे = संपन्न किया । चंतन (१२) रेणि गदाई सोहू, दिब गवाइना खाइ । हरे कैंसर जनसहै, कज्ड बदले जाइ ११। नामु न जानिआई रामक । मूहे फिरि पाछे पछताहिरे ॥ रहा। अनता शुद दरणी धरे अनत न चाहिया जाए । अमत कह चाहन जोशए से अशए अनत राबाइ ।२। आपण लोआ से मिले तसई को , हक। करम उपरि निई से लो है स६ कोइ 1३।।