पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२५९

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२४६ संत-काव्य नानक करणी जिति सीमा, सई सार करे । हुकए म जापी खसम का किसे बढ़ाई दे १४। लोर्न अभिलाषा करते हैं। सर=पूर से जाषी ल-किया। उपर्देश (१३) अंतरि बसें न माह हरि जाइ । अंत्रितु छोड़ काहे बिखखाटू ॥ १। ऐसा गिश्चातुजहु मन मेरे । वढे चाकर सावं केरे ।रहा। शिग्रानु घिग्रा सत्रु कोइ रवै । वॉमि बांधिया स५ अगु भवे 1२। सेवा करे ले जाकर होइ । जलिलि महो अलि रवि रहिआ सोइ ।३। हम नहीं चंगे बुरा नह कोइ। प्रणब मान पतारे सइ 1४। के वे चक्कर काटता रहता है । रवि रहिआ=रमा हुआ है। चेतावनी (१४) करणी कांगडु मनु ससवाणी, मुरा भला कुछ ले १ए। जिउ जिड किरढ़ जाए तिज चलो, तजु ण नाही अंतु हरे 1१। चित चेतसि की ही वावरिया, हरि बिसरख तेरे गुण गलि आ रहा। जालो हैमि जलू दिन्द्र हुआ, जेती वड़ो फाहो तेती। रसि रस चोगशु गहि नित फासहि सि मूड़े कबन एणी ।२। काइन आर मनु बिच्चि लोहा, पंच अगनि तितु लागि रही। कोइ ले प'प पड़ ति ऊपरि, सतु जलिआ संनो चित भई ।। भइया मरु , फिरि होवेजोगुरु मिल तिनेहा । एफ़ ना अंत्रितु उहु देव तरु नानक त्रिससि देहा ४१। मसवाणी=स्याही । जालो=बंधन । फाहो-=फसाने वाली। चोग चुगन्ने का चारा। कवन गुए=किस युक्ति से। प्रारणु : अरणी अर्थात् अग्नि मंत्र के लिए काम में लाया जाने वाला लकड़ी का यंत्र। संनोचित --