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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२६४

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मध्ययुग () २१ जो तिरु भाई सु, आरतसड़े होइ ।३है। हरि च रण कर मकरंद लोभितमनो अनदिनो मोहिया ही पिपासा। ) किंपा जतु देहि नानक सरग कड । होइ जाते तेरे नामि वासी 18 । जनक मानो। चवरो कर =चंवर डुला है । नन=बिना। चानणि =चाँदनी। सह =पृथ्वी पर ' सारिंग =सारंग। पपोहा। साखी मिंटो से सलमान को, पेई पई कुम्हिार। यईि भडेढ़ दशकोना, जलदी करे पुकार 1१। जलि जलि बपुड़, झझिड़ेि पराहि गिनोर। नानक जिनि करके कारण कटेवा, सो जातें करतार 1२ संधुतापस जाणो, जा रहे सवा होझ। कू ड़ को सलु उत, तनु फरे झछा थोइ ।३ ॥ कुंभे वब"ा ज , जल वितु कुंभ न होझ। गि प्रशन करवधा मत हूं .र निलू गिआन न होह है।४। स, को नि , परसंड सिब न कोई। बरि ताराऊ तोली, निवं सु, गड्रा होझ ।।५। मनका सूतक लो है, जिह्वा सू तकु कूड़। अखी सू कु वे खणt, पर त्रिय परधन रूणु १६है मंडहु हो भंड उप, भंडु बालू न कोइ । नानक भर्ड बाहराएको सवा सोइ ७। जिनी न पाइड म रसू, कत न पाइड साड। ने घर का पहु ण, जिउ2Tइना तिज जाड५८। कमरि कठारी , बंके का असबारु ।