पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२६७

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२५४ संतकाय मैं चड़िके बेषिश्रॉ, तो घरि घरि एहा अगि 8r कागा करंग ढंडोलियासगला चाइना मासु ।। ए इइ नैना मति झूहज, पिब देषन की प्रास 1१०। माणु सबारह में मिलहि, में मिलिछा सुषु होइ । फरीदा जे क्रू में हो रहहस जए तेरा होइ ।११॥ सरवर पंप हक, फरहावल प्रस ॥ इडु तनु लहरी गई थिा, सचे तेरी आास 1१२ा। विरहा विरहा अषीविरहा तू सुलतानु ।। फरीदा जितु तनि बिरहूं न , तो तनु जाण मसालु 1१३। बूढा होना शेख फरीदकैथणि लगी इह ॥ जे सब बरिी जीवणा, भी तनु होसी बह 1१४। फरीदा सिर पलो, दाड़ो पलटे पूछर भी पलीआई ॥ रे सन गहिले बाबले, माणहि किआर रलीज 1१५। जिदु . . परणाइजीवन बशू को मरण वर विवाह कर के ले चला जायगा। जो. . . अमि जो तुओं पर प्राधत करें तू उस पर भी न कर बैठ ) से . . . बहिंदू उनमें पक्षियों को चों घु भाई जा रह है । मइया .. .होड मरणोपरांत कृत का अंग बन कर हमारे ऊपर आ जाती है । दt . . . जोड==दूसरे की घ7 में चुषड़ो गई रोटी अर्थात् ऐश्वर्य को देख कर उसके लिए तरसना छोड़ दे। वारि=पर। एवं इस प्रकार से। टुसू . . . जगि =दुः-ह सर्वत्र संसार भर में दीख पड़ता है । करंग ==हडुि यों की ठठरी का ढांचा । जाए. . .होइ =प्रपने को सभी के ‘मैं' में लीन कर बो सभी सख मिल सकता, स्वार्थ पर्थ में भेद न रखो। सरबर , .. पचास==तालाब के इर्द गिई बलिष्ट पक्षो ताक में है और इन मेरे शत्रु की संख्या कम नहीं है ।. . आस=हे परमात्मन् संने तेरे ही भरोसे पर शरीर को लहरों में छिपा रखा है । . . . मेह-यदि सौ साल भी जीना हो फिर भी, अंत में, उसे मिट्टी में मिल जाता है । पली-पक कर इबल