पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२६८

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संययु य (यूवर्ड २५. हो गया । गड्रिल बूर नादान, गंवार, मूख । साणहि. . . रल नई =अहंकार या गर्व में क्यों हो रहा है । गुरु अंगद गुरु अंगद का पूर्व नाम लहिना था और उनका जन्म, सं० १५६१ की वैशाल वदि ११ को, एक स्त्री परिवार में आा था ' उनके पिता व्यापारी थे और अपना जन्मस्थान मसे दी सराय’ का परित्याग कर उस समय हरिके’ में कारोबार कर रहे थे । लहिना के बड़े हो जानेपर वे फिर खडूर (जि० अमृतसर) चले आए और वही उनका स्थायी निवास स्थान बन गया । लहिना पहले शक्ति की उपासना करने थे मैं एक बार उन्हें संयोगवश किसी के मुंह से ‘असादी बार' की कुछ सुन्दर पंक्तियाँ सुन पड़ी जिन पर मुग्ध हो गए औरगाने वाले में उनके रचयिता गुरु नानकदेव का पता लगाकर, उनसे मिलने के लिए परम आतुर हो उठे । उन्होंने करतारपुर जाकर गुरु नानकदेव से भेंट की और उनके सत्संग द्वारा प्रभावित होकर उनके प्रति आत्मसमर्पण कर दिया । बाबा नानक ने पहले इनकी कड़ी परीक्षा ली और कई बार इन्हें उसमें खरा उतरता देख कर उन्होंने इन्हें अपना शिष्य बना लिया। तब से ये उम्हों साथ रहने लग 1 उनके लिए इतने योग्य एवं विश्वसनीय बन गए कि उन्होंने , अपना देहांत होने के पहले न्हें अपने दो पुत्रों की भी उपेक्षाकर अपना उत्तराधिकारी स्वीकार किया। इनको भी अपने गुरु के प्रति बड़ी निष्ठा थी और ये कुछ दिनों तक उनके लिए विरहाकुल से बने रहे। इनका स्वभाव अत्यंत क्रोम एवं बालसुलभ था और इन्हें दीन-दुखियों की सहायता तथा कोढ़ियों की सेवासुश्रुषा में बहुत आनंद मिलता था। प्रसिद्ध है कि, शेरशाह द्वारा खदेड़ दिये जाने परबाद शाह हुमायूं इनसे मिलने आया था और वह इनसे प्रभावित भी हुआ था ! इन्होंने अपने गुरु का पदनुसरण करने का पूरा प्रयत्न किया