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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२७०

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मध्यपुरा (मुंबई) २५७ नामक सापति जारणो , जापति रसे सोइ HAI सें सड चंबा उगवहसूरज चड़हि हजार। एते चनण होदियागुर बिदु घोर अंधारु ।६। इंडू जगू सर्च की है फोठड़ी, सचे का बिचि बासु । इकन्ह हुमि स्माइलएइकन्हा हुकने करे विणतु ५७५ जयु तयु स५ कि संनिर्देअचरि कारा सभि वादि। मानक संनआा मंनि , मुझी र परसदि ।।८। नानक fचता मत्ति करg, चिता तिसही होइ। जल अहि जंत उपाइप, तिलांभि रोजी देx है।cur नान तिन्ह वसंतु है, जिन घरि वसिआ कंतु। जिन्ह कोत दिसापुरीसे अहिनिसि फिरहि जलंत ११०। मिलिट्टे मिलिआ न मिलेंमिले मिलिआ जे होई। अंतर प्रात: जड़े , सिलिया कहोझ सोइ है।११। सावणु आइआ है सखो, जलहरु धरसनहार । नानक स्तु खि सब सोहागथी, जिन्ह सह नालि पिश्रु 1१२। अरवी. . . वे खणा ==बिना आंखों के भी देखना है । नानक मिलणा ==ईश्वरीय शान प्राप्त कर उसमें लीन हो जाना। दारू = बवा 1 बु* =जानतत हैं । अने=निकला। जातिशक्ति। बादि = खुर्थ दियुरो =दिसावरविदेश में। जलहरु =य, जलधर। नालि==' निकट में। गुरु अमरदास सुरु अमर दास का पूर्व नाम अमरू' था और उनका जन्म, वैशाख सुदि १४ सं ० १५३६ को, अमृतसर के निकट बसरका गाँव में हुआ था से उनके पिता भल्ला शाखा के खत्री थे और उनकी जीविका खेती तथा व्यापार को श्री । अमरू ने ठणव संप्रदाय के अनुयायी थे और १७