पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मध्ययुग () २५४ व है उसी प्रकार मनुष्य को भी चाहिए कि वह सांसरिक व्यवहार में हताश भी अपने हृदय को ईश्वरोन्मुख रखे। गुरु अमरदास को रचनाएं 'आवा आविग्रंथके अंतर्गत महूछा ३ के नीचे दी गई मिलती हैं 1 इनकी सब के प्रसिद्ध रचना आनंद है जो विशेषकर उत्सदों के अवसर पर गायी जानी है और इनकी अन्य रचनाओं में इनके पद बहुत है जिनमें ईश्वर प्रेमगुरु भक्ति तथा नम्रता के भाव विशेषतः उल्लेखनीय हैं। पद अहंत का मेल (१) जगि हड़ने में लु दुख पाइओ, मलु लागी दूजे भाइ। मनु उर्स धली किवं न उतरेजे सड तीरथ नाइ । बहू विवि करम के मवईइणी मनु लगी श्राइ। पड़ियों में लु न उतरपूछढ़ रिमनीआर जाइ 4१। मयू मेरे हुए सरण , ताहि न मलु होड़ । मनसुख हरि हरि करि थ, मैजू न सकी धडू ।रहा। सनि सैले भनति न होधईना में पाइच जाइ। सनमुख मैले मैले मु ए, जासनि पति गवइ ।॥ गुर परसादी मनि वर्से संलु हउसे जाइ समाई। जिड अंधेरे दोषकु वलतिज .र शिया मिअगिआानि तजा। हम कोआ हल करहगे, हम मू रख गबार। करण बाला विसरिआ, दूर्फ भइ पियार है माइग्र जेवई दुख नहीं, अभि भवि थके संसार। गू र मती सुषु पाई, सघु नानू उरधारि ।३। जिसनो मेले सो मिले, हड तिरु बलिह। जड। ए मन भगती रतिमा, सदु वाणी निज थाछ । मनि रते जिह्वा रती, हरिगुण सचे गाड़। नानक नामु न वीस, सचे माह सभाड !।४। ।