पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२७४

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मध्ययुग (ई) २६१ साल्लाही स्तुति क’ता हूं' करमिन्दया द्वारा 4 होरु =और। सझसि सिल करते हो। घडि.. .सबारह = बनते बिगड़ते न सुधारते हो । अर्शीद झा नम (३) मेनका सूतयुद्ध सजावड। संरके भूले प्रावड जड १ मनमूरिख तक कवह न जअइ जिर सघदि न भजै हरिके नाइ १रहा। स् यू डू नेता सह आरुर। मरि आरि जंगे यारोबार 1२। सू सूतई अनि पडरों द्वाण ई: साहूिं ।सूतक भोइनु जैता कि खाहेि ३। सूतष्क्षिक केएस न ज होझ। नशमि से मनु निरस्तु होझ ४। सतिगुर सेवि सूत ज। सर जनमें कालु न इ ५५। सास iतमृति तो के न शों इसे वि ए नार्च को मुखति न होझू है।६। कुग मारे मा उलए सबढ बचारि । कलिमहि तुर खि उतरसि पारt७। साना मर न अज जाइ। ननक हुर मुखि रहै समझ ८" सनदि -फितूरे का। संासत =शास्त्र। अदना का अनर्थ। (४ हुउसे मात्र सालि किरोg है, हुई बह इकठाई। हजक चित्रि से न होवईतामढ विरथा जाइ 1१। हर हि सन मेरे तू गुर की सबई कमाई। हुकदमि नहि ता ह९ , सर विचg हमें जाई ।।रहाड । हउर्भ समु सरोक है, हड’ उपति होझ । इउमें बड़ा सुधार है , हउमें विचि बू िन सके कोइ है।२है। हउसे बिश्चि भगति न होवईहुक न बुमिना जtइ। हउसे विवि जीड बंधु है, न न बसें सन ऑाह 1३। नानक सतगुरि मिलिन् 2उसे , तर सघु बसिया मनि नाई। स कमाथे सचि रह, सधे सदि समझ ।४है। नवंनालि==नाम के यहां से हुकदि संनहि =ईश्वरेच्छा पर ही निर्भर