पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२७७

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२६४ संतबाब्य असें खेल करें सभि करता, औसत्र कोई !।३है। शुदूर परसादी एक लिव लगी, दुबिधा तक विनासी। जो तियु भए।व सप्ति कुहरि मनिहकाटी जम की फासी ४५। भणप्ति नानकु लेखन मार्ग, कचना जादू का मनि अभिमाना । तासु , धरमाइ पतु है, पए सचे की सरना ५। जह. . सुमी के स्वामिन् तूने जहां कहीं रख दिया वही में रहा। थावा=स्थित होम इंg...संस-भ सबको मालिक का ही मान कर व्यवहार किया जाता है। समानता का भाष (६) जाति का गरबू ल करिडु कोई। बहू विद सो बाह होई ५१t जाति का घरgन करि मूरख गंवारा। इस गरबते जलहि बहुतु विकारा रहा। चारे वरन थर्ष सर्दी कई । वल, fहंदु सभ उपति हई है। माटी एक सगल संस : बहु बिधि भांडे घx कुहारा है । पंच तनु मिलि दही का आकारा ने घटि चधि को करें वीचारा 1t४ कहतु नानक इह जोड करस बंधु होई ! दि सतगुर भंटे सु कति न हई।।५है। वहे जानता हूं : घटि चवधि =घटबढ़ फर। इह . . .होई== यह जी कार्यों के बंधन में पड़ा हुआ है। वहीं सब कुछ है। (१०) निरंकारु प्राकार है अपेअये भरमि भुलाए ?। करि करि करता आये हैं, जितु भाव तितु लाए। संवक कड एह वड़िआईजाकद्ध हुकम् मनाए है१। अष्था भाण आये जाएँगुरकिरपा में लगी है। एहां सीति सिवं धरि आई, जबदिंग्झा सरि रही है।रहाडt .