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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२७८

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संध्ययु से पूर्वार्द्ध) २६७. बंद पड़े पढ़ि वाडु बधाएं, व ह बिस महेसा। एहूं टिंटु ण माइअशिनुरागढ़ मुल्लाआम जनममरप का सहसा । गुर परसदी एकड़े जाएंहै मगह अंदेसर है।२१ हम बोन रख आबचा, तुम चिना करह हमारी ॥ होटू बढ़झाल करि बासु दाता का, सेवा की सुपारी ॥ एक निबान वेहि तू अपाअहिनिसि नाम वाणी ।३!। कहद नान् गुर परसादी लू हूं, कोई अंसार करे धीचारा है। जिघु जल ऊपरि फ , दुदकुंद, हंसा इंटु संसारा है। जितने होटर तिसहि सराणा, चू कि गइना पासारा १४ वेr =द खा करता है । जाकर . . .मनाए =उसकी आज्ञाओं का पालन करे । शायण ... लगी में - पहेश द्वारा अपने आपको जॉन ले। जीवदिन . . . रहोॐ =जीते जी मृतकबद रहें। एको इसे। विघन =रहस्ज, भेद। सुच्चा नागस्मरण (११! राम राम सटू को कह , कहि रस्मू में हई है गुर परसादी रामु समनि बहै, स फ ाई कोइ ४१ अंतरि गोवद जिस लाद :ति। हरि तियु धर्द न बीस, हरि हरि करहि सवा समि वीति है।रहाउ। हरद जिन्ह कपटु बस , बहरहु संत कहfहैं है। त्रि सना सू लि न चू , अंति गए पछताहि है२१ अनेक सीरथ से जलन करे ता अंतरकी उ१ कद न आइ है। जिघु नर की बिबो न जाइ, हरप्रइ तितु वेइ सजा १३। कर होवे सोई जनु पाए गुरवि भूसे कोई ॥ नानक विचरटू हमें सारे हां हरि भेटे सई ।r४। हरि.. . चोति=निरंतर हृदय स्ले नगस्मरा होता रहता है । करमू =कृपा, अनुग्रह ।