पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२८४

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। संध्ययु ा (पूर्वार्द्ध) २७। सिंगाजी जो भर नजरा देखा, वो बोही गुरू हमारा ५। मुकमणि =सुख स्ल नाड़ो। भर नजरा=खुली आंखों से प्रध्यक्षा साखीं। नर नारी में देखिलेसब घट में एकतार। कहे सिंशा पहचान ले, एक ग्रह है सार १। हम पंथी पारिब्रह्म का, जो परंपद दुर। निराधार जहां मठ कियाजहें चंदा नह सू ए ।।२॥ बास इवाल दो बैल हैं, सुत रस लगाव । प्रेम सिरहाणो करबो, ज्ञान श्रर लग ।३। साखीपिहणझे =लंबी लकड़ी। भार=लोहे की कील व नोक है। भीषनजी संत भीघनजी को मेकालिफ़ साहब ने बदायुनी के आधार पर काकोरी का निवासी योग्ष भीषम नामक स्पू को समझा है और लिखा है। कि वे इस्लाम धर्म में पक्की आस्था रखने वाले एक सदाचरणशील अयक्ति थे जिनकी मृत्यु सं १६३०-१ में किसी समय हुई थी, परन्तु ‘आदिथ' में संग्रहीत दो पदों के रचयिता संत भीषनजी का बदायूनी के दर्शनासार फक़ीर होना कुछ नहीं जंचता । ये भीषन राम नाम के प्रति गहरी निष्ठा रखने वाले कोई सरस्हृदय हिंदू से ही जान पड़ते हैं । इनकी भाषा से इन्हें हम उत्तर प्रदेश का निवासी ठहरा सकते हैं और अनुमान कर सकते हैं कि मैं भी, संभवत: रैदासजी की भांति कोई साविक जीवन यापन करने वाले, व्यक्ति थे । इन एक सद में भगवत्कृपा एवं दूसरे में रामनाम के महत्व का वर्णन है । इनकी भाषा सीवी सादी, किन्तु मुहावरेदार है और इनकी वनशैली भाव पूर्ण होती हुई भी, प्रसाद गुण के कारण अत्यंत सुन्दर एवं आकर्षक है ।