पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२८७

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१७४ संतकाव्य मेरे मन सी भगति बन आई। हड हरि बिनु बिनु पलु रहिन सम्डजैसे जल बिन्नू सोनु अरिजाई।। हाउ? कब कोड मेले पंचसत बाइ, कक्षको राषु बुनि उठाई। मेलत चुनत खि पलु चसा लगेंतब ल मेरा मनु राम गुन गावं २५ अबको गले पाद पलाएँ कबक्रो हाथ पसारे? हाथ पाव पसारत बिल क्लुि , तब ललु मेरा मन शम समारे ३। कब को लोगद कड तिभादेलोकि पतीलें गा पति होइ॥ जन नानक हरि हिरई स घिनाब, ता जे जे फरे स४ कोइ १४। सबको. . . रबाबु =को न के लिए कब तक कोई नाचने का सामान ढूंढ़ता फिरे अथवा कब तक बाजे बजाये । वारखिदु -=विलंब। कंबकोड... उठावे=कब तक कोई भजनीकों में सम्मिलित होता फिरे और कब तक स्वर अलाया करे। हरि का निरही । (२) माई नेरो श्रोत रामु बताव री भाई है। हड हरि बिनु बिनु पलु रहि न सकडजैसे करहलु बलि रिझाई ।रहा। हरा न बैराण बिरकतु भइड, हर दरसन सोत के भाई ॥ जैसे अलि कलश बिनु रहि न सके, वैसे मोहि हरि बिनु रहन न जाई १। रायु सरण जगदीसुर पिआरेमोहि सरथ पूरि हरि गुंसाई। जन नानक के मनु घेनडु होत है, हरि बरस निमष दिखाई है।२५। करहलु =ऊंट१ हरि... भाई=हरि दर्शनों के लिए ड्यन होकर केवल उसके प्रति अनुराग व्यक्त करने के कारण५ राषु.. . साई=हें जगदीश्वरस्मृहै अपनी शरण लो भर हे स्वामित्मेरी साध पूरी करो। हरि की खोज (३) मेरे सुंदर कहद मिले किजु गलो। हरि के संत बतावडू मारg, हम पीछे लागि चल ।रहा।