पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२८८

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मध्ययुग () २७ शिमके वचन सुखाने होअरेइह चाल बनी है भली। लरी प्रधुरी ठाकुर भाई उह, सुंदरि हरि हुलि मिली ११। एको प्रियु सरआई संभु प्रिंयकीजो भाव पिंव सा भली । मान गीलू किया और बिचाराहरि भावे तितु राह चली १२ सुंदरु=सियत किंड गली =किस मार्ग से जाने पर।सूषाने = नदिह कर दिया। लदुरी...छह=उस सालिक बा प्रियतम की सारी अटपटी बातें पसंद अर गई"। दुवि=उधर पूर्णतः प्रवृत्त होकर। (४) अब हम चली ठाकुर पहि हारि । जब हम संरणि श्र की अई। राषु प्रभू भरे मारि ।रहा।" लोकन की चतुराई उपमारवैलंतरि जाहिर है। कोई भला कड भाव बुरा कहकहम तनु दी उद्द ढारि ५१ ओो अबत सरणि प्रभु तुमरी, नितु राहु किरपा बारि /3 जन दानक सरणि तुमरी हरिजीड, राहु लाज मुरारि ५२३। लोकन...जात्रि लोगों के चातुर्यपूर्ण चबावों को जला दिया है अथत्ि उनकी उपेक्षा की है । विरहवेदना (५) हरि दरसन कऊ मेरा मतु बहुतपतजिह शिषाबंतु बिनु नीर 1१। मेरे मनिं से लगी हरि तीर। हमरी बेचन हरि प्रभु जाने, मेरे मन अंतर की पीर ।रहा। मेरे हरि प्रीतम को कोई बात सुनाबे, सोभाई सो मेरा बीर ५२॥ पितु लुि सी गुण कहु मेरे प्रड , सतिगुर मति की धीर ।३। जन नानक की हरि आास पुजबलुहरि दरसनि ांति सर ११४३ तीर=निकट : बीर साथी।