पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२९०

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। मध्ययुग (यूब ) आयं जलु मिलावं । आपरंप करत, आपे सेलि । नानक गुमृषि सहज मिलाए, जिउ जलु जलहि समाई ८। इसे बाल-चंचल मन। मड़ईः -मरा हुआा। राम. . .दुग्राइमरा= रमभाम का उपदेशमृत प्रदान किया। बोलो कजूसी बा मखौल । उत्तति स्तुति : यदेि-कम करना 1 अरों . . . लाई=द्म गली को चिन गरी ला ददे पर भी। अपना ट (८) पंडि8 सासत सिमिति पडिया। जोगी गोरखु गोरखू करिया। में पूरा रि हरि जयु पड़िया ३१३ ना जाना क्रिय गति राम हमारी। हरि भजु मन मेरे तल औउ जलू तू तारो ।रहा। संनियासो बिभूति लइ देह सवारी से परत्रि तिआलागू करी ब्रह्मचारी। मैं मूरद हरि पास तुसी है२है। घत्री कर करे सूर तष्णु पार्टी । सू डु बंसु परकिरति कमाई है। मैं मूरए हरि नाम छड़ वै ।t३? सभ तेरी निसट टू आपि रहश्र ससई । गुरमुद्धि नानक दे वड़ि आई। में अंधुले हरि टेक टिकाई १४ सू हुई बैठ =ड वैश्य 1 ५ रकिरति कमायें --अपने स्वभावानुसार सफल त्ति ह । प्रिय हरि नाम (६) हड अनदिलु हरि ना कीरत करउ। सतिरि मकड हरिना बताइआ, हज हरि बि घिनु पलु रहिन सकड ३३ रही । हरे व्रवण सिमर हरि कीरत, हड हरि बिनु रहि न सकउ हड कुपितु 4। जैसे हंसु सर बर बिनु रह न सके,ोसे हरि जतृ कि उर है हरि सेवा बिन १ ।