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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२९३

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८ 9 संत-काव्य । उनकी कृति जाय 1 फूटकर पद भी भिन्न-भिन्न संग्रहों में मान लिया ही मिलते हैं और कतिपय छोटी-छोटी पुस्तकें उनके एवं कबीर साहब के संवाद रूप में पायी जाती है 1 कबीर साहब का पौराणिक वृत्त तथा कबीरपंथ की पूजनप्रणाली, ऐसी रचनाओं में प्रधनतः दी पड़ती हैं और बहुत से पच्च स्तुति, प्रार्थनादि से भी संबंध रखते हैं । धर्मदास की पंक्तियों में सगुणोपासक भक्तों कई आतंभा विद्य मान है और उनकी दास्यवृत्ति के भी उदाहरण प्रचुरम।त्रा में मिलते हैं। उनकी भाषा पर कहींकहीं पूपन का प्रभाव रक्षित होता है जिसका कारण स्पष्ट नहीं है । पढ कनौर पिया (१) सोरे पिया मिले सत ज्ञानी टेका। ऐसन पिछ हम कबखून देखा, देख सुश्त लुभानी 1१। आपन रूप जब चीन्हा विरहिन, तब पिंय के मनमानी है।२। जब हंसा चले मानसरोवर, मुक्ति भरे ज, पानी 1३)। कर्म जलाय काजल कोहापर प्रेम की बानी ।४है। धर्मदास कबोर पिंय पाये, मिटगइ आवाजानी 1५। (१)सतशानी =सत्स्वरूप को अनुभूति वाले । तब . . . मनमानी= तभी प्रियतम द्वारा अपनायी गई। सू वित.., पानी -जहां पर मुक्ति का भी अपना महत्व नहीं रह जाता ॥ आवाजानी '=प्रावागमन, संसार में जन्म लेने एवं मरने का सिलसिला। नामस्मरण-महत्व (२) हम सतनाम क बंपारो ।। । कोइ कोझ लाद फ़ांसा पीतलकोइ कोइ लौंग सुपारी। हम तो लाखो नाम धनी को, पूरन खेप हमारा 1१!