पृष्ठ:संत काव्य.pdf/२९५

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२८ २ संकाय प्रेस अभ्रद होइ साथ नहाय है२t खुली किबरिया मिटते औचियरिया, धम् सतगुरु जिन दिया है लखाथ ५३। घरमदास बिखे करजोरों , सतगुरु चरन में रहत सराय ।४है। खम ==कभीकभी से झरि. . . घहराय= अमृतलाब व अनहुत शब्द। खुली . . . बियरिया =अनुभव होते ही अति दूर हो गई । संत दादू दयाल संत दादू दयाल का जन्म फाल्गुन मुदि २, बृहस्पतिवार, स० १६०१ को हुआ था और इनका देहांत ज्येष्ठ वदि ८, शनिवार, ७ १६६० को हुआ। इनका जन्म-स्थान गुजरात प्रदेश का। अहमदाबाद नगर समझा । जाता है और इनकी जाति धुनियाँ की मानी जानी है । इनका देहावसान राजस्थान प्रांत के नराणा गाँव में हुआ था जहाँ पर इनके अनुयायियों का प्रधान मल बा ‘दाद्वारा आज भी वर्तमान है, वहाँ पर इनकी दासगद्दी चलती है और उसके उपलक्ष में प्रति वर्ष फाल्गुन की शुल्क चतुर्थी से पूर्णिमा तक एक बहुत बड़ा मेला लगता है । प्रसिद्ध है कि इन्हें अपनी वय के ११ वें वर्ष में ही किसी अज्ञात संत द्वारा दीक्षा मिली थी जिसे वृद्धानन्द व बुड्ढन कहा जाता है । उन्होंने इन्हें उस समय अधिक प्रभावित नहीं किया, किन्तु १८ में वर्ष में, इन्हें फिर एक बार दर्शन देकर संत पंथ की ओर प्रेरित कर दिया। तब से ये कुछ दिनों तक देशाटन, सत्संगचितनमन एवं कतिपय साधनाओं में लगे रहे और लगभग ३० वर्ष की अवस्था में ये सांभर आकर रहने लगे जहाँ पर अपने उपलटब्ष अनुभवों के के आधार पर, इन्होंने एक ब्रह्म संप्रदाय' नाम की संस्था का सूत्रपात किया । यही संप्रदाय, आगे चलकर, ‘परब्रह्म संप्रदाय' कहा जाने लगा और फिर इसी का नाम ‘दादूपयके रूप में भी विख्यात हुआ। जान