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प्रस्तावना

अपनी पुस्तक 'उत्तरी भारत की संत-परंपरा' की 'प्रस्तावना' में मैंने कहा था कि उसका सम्बन्ध प्रधानतः संतों की परंपरा के ही परिचय से है, उनके मत एवं साहित्य का परिचय देने के लिए दो अन्य पुस्तकों की आवश्यकता होगी। इस विचार से मैं 'संत साहित्य की रूपरेखा' नाम से एक पुस्तक लिखने की सामग्री एकत्र करने लगा था। संत-साहित्य के केवल कुछ ही ग्रंथों का अभी तक प्रकाशित रूप में पाया जाना, हस्तलिखित पुस्तकों में से भी अनेक का दुष्प्राप्य होना तथा उपलब्ध प्रतियों का भी अधिकतर संदिग्ध पाठों के ही साथ मिलना इस प्रकार की बाधाएं हैं जिनके कारण विलंब होना अनिवार्य था। इस बीच कतिपय मित्रों के सुझाव के अनुसार, मुझे यह उपयोगी जान पड़ा कि संतों की काव्य रचना-शैली का भी एक परिचय दे दिया जाय और इसके लिए उनकी पद्यात्मक रचनाओं में से कुछ को चुन कर तब तक एक छोटा-सा संग्रह प्रकाशित कर दिया जाय। प्रस्तुत पुस्तक इसी उद्देश्य से किए गए प्रयत्नों का फल है और, इस कारण, इसका व्यापक क्षेत्र उतना व्यापक नहीं है।

इस संग्रह में आदि संत कवि जयदेव से लेकर स्वामी रामतीर्थ के समय तक की चुनी हुई रचनाएंं सम्मिलित की गई हैं। ये भिन्न-भिन्न संतों की कथन-शैली वा रचना-पद्धति का प्रतिनिधित्व करती हैं। फिर भी ये अपने रचयिताओं के अनुभूति-जन्य भावों की भी परिचायिका हैं और इस प्रकार इनके द्वारा संत साहित्य के प्रमुख विषय का कुछ आभास मिल जाना भी संभव हो सकता है। संतों ने इन्हें अपना काव्य-कौशल प्रदर्शित करने के उद्देश्य से नहीं लिखा था और न इनकी रचना द्वारा उनका प्रधान लक्ष्य कभी सगुणोपासक भक्तों की