सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सथ्ययुग (पूवर्क ) २९ ३ दादू इसक अलह की जाति है, इसक अलह का अंग वे इस अलह औजूद है, इसक अलह का रंग ५३४' एक अद्वितीय परमात्मतत्व । अरशाह --आत्मा । घाह दे =पुकार करता है ।प्रसिद्ध है कि इस साखी को संत दादू दयाल ने अकबर बादशाह के एक प्रश्न पर कहा था जड़े परमात्मा की जाति, अंग, अस्तित्व एवं रंग से संब्ध रखता था। औउद इबजूद, अस्तित्व। अनुभव ही रूप ज्ञान लहर जहां थे उडे, वाणी का परकास। अनर्भ जहां मैं अप, सबर्वे किया निवास है।३५।" दादू आपा जब लगे, तब लग दूजा होइ। जए यह आापा मिटि ग्रंथा तब दूज नहीं कोइ ।३६३। दादू है क मैं घणरनहीं क कुछ नह । दादू नही होइ रई, नए साहिब मांहि ५३७। सुभय सरोवर मीन सस, मीर निरंजन देव । दादू यह रस बिलसिथे, ऐसा अलष अर्नब 11३है चर्म दृष्टी देखें बहुत, छातम दृष्टी एक । ब्रह्म दृष्टि परचे भयातब दादू बैठा देख 4३। थेई में मां बेह, येई अतम हो। येई में मां , बाद पलटे दोd t४०। दादू सबद अनाहिद हम सुग्या, नसिष सकल सौर । सब घटि हरि हरि होत है, सहज ही सम थोर ।४१। जे कुछ बेद कुरन थे, अगम अगोचर बात । सड़े अन्में साचा 'है, यह दाईं अकह कहात ५४२ा। प्रण हमारा पीवस, याँ लामा सहिये । पुहप वासमें , वृत्त हूध , अब कासाँ कहियं ४३। दादू हरि रस पोकतांकबहूं अरुचि न होइ है।