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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३०७

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२७४ लकाव्य पीवन प्याला नित नवापीबणहारा सो ।४४। अनमै=अनुभव । * =भय से चर्म दृष्टी -=साधारण प्रकार को दृष्टि अक्ल=अनिर्वचनीय है दाडू ने लागी तब जात्रियेजे कबहूं त्रुटि न जाईं। जोबत याँ लागी रहेमूत्रां मंझि समाइ ५४५। सब त िगुण प्रकार के, निचल । मन ल्य लाइ यात्म चेतस प्रेम रस दाइ रहे समाइ I४६। याँ मन तडे सीर को, ज्य जागत सो जाइ। दादू बिखरे देषसहसहजि सदा ल्याँ लाइ ४७। यादि अंति संधि एक रस , ठे नहि धागा है बालू एडे रह गया, तब जाणी जागा क१४८।। भगत्ति भगति सबको कहै भति न जाएं कोइ । दादू भक्ति भगवंत को, देह निरंतर होझ ।४थे। बालू नैन बिन देविदबा, अंग बिल पेषिबा, रसन बिन बोलिबा, बह सेती। श्रवण बिन सणिवा, चरण बिन चालिबा, चिन चिन चित्यबा, सहज एती ।।५०। ले बिचार लागा रहै, बाद जरता जाइ। कब पेट न आफरे भावै लेता षइ ५५१। सोई सेवग सब जरें .जेता रस पीया । बाल गूझ गंभीर का, परकास न कोया ५२। पेषिवा पखना, तष करत, अवलोकन करना । ब्रह्म सेतोब्रह्म के साथपरमात्मा से। चित्यबा =चितन करना, विचार। सहज एती यहो सहज को स्थिति बा सहजावस्था है। ले... विचारपूर्वक भजन में लगा रहे और परमात्मतत्व को पचाता बा अपनाता चले। अफरेजो के कारण फूलता नहीं,