पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३०९

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२६ संत-केदव्य जहां राम तह में नहीं, मैं तई नांही रम में बाढ़ महुल बारीक है, हूं नहीं शाम ५६३। सीष्ठं सीखने मात्र से ही। व्यापक ब्रह्मा। बाबू सवहीं शुर कियेपदु पंधी बनराइ । तीनि लोक गुण पंचसौं, सब हीं साह खुदाइ 1६४। दादू द जिन धकृहैं, और न देष कोई । पूरा देशों पब क, बाहर भीतर सख ६५॥ तन मन नहों में नहीं, न माथा नह जीव । दादू ए देषिचेबदास मेरा पीव ३६६है। वह दिसि दीपक तेज के, बिन बाती बिन तेल । चहूं बिसि सूरज देखियेदादू अदभुत खेल ।६७। सबही गुर किये =सभी को गुरुवत् मान कर उनके अनुसार चलने का । निश्चय किया। है । पूरा=र्ण, व्याप्त। बहदिस = दशों विशशों में, सर्वत्र। लीला बाजी चिह्र रचाइ करि, रझा अपरछन हो: । माया पट पड़द दिया, त५ लगे न कोई ।।६८है। जब पूण वह विचारिये, तब सकल मातमा एक । काया के गुण देखिये, तौ नाना वरण अनेक ॥६। अंधे क दीपक विथा, तभी लिमर न जाइ । सोघी नहीं सरीर की, तसनि का समझाइ १७०। बाज=खेल, दृश्य 1 चिह->चिड़ियों की जैसी चहल पहल। अपरछन:=यप्रत्यक्षों। (७०) सोधीशुद्धि।