२६६ संत-फाख्य सदा बाधाएं डालते रहे । इनसे द्वेषभाव रखने वाले अन्य व्यक्तियों में एक प्रसिद्ध राजा बीरबल थे और दूसरा चंदशाह था जो अकबर बादशाह का अवंत्री था : चंदू इनके पुत्र हरगोविन्द के साथ अपनी पुत्री का विवाह न कर सकने के कारण अपने को अपमानित समझता रहा । उसने इनके भाई प्रिथिया से मिलकर इनके विरुद्ध अनेक प्रकार के षड़यंत्र रचे और जहांगीरबादशाह के समय तक, इन्हें राजद्रोही तक घोषित कर दिया । फलतः ये राजबंदी बनइये गए ' इन्हें अनेक प्रकार के कष्ट दिये गए और अंत में, इन्हें रीत्याग तक करने के लिए विवश होना पड़ा । इनका देन्स सं२ १६६३ की जेड सुर्देि ४ को, रावी नदी में जल समाधि लेने के कारण हुआ जब कि इनकी अवस्था केवल ४३ वर्ष की ही थी। गुरु अनदेव एक बड़े ही योग्य व्यक्ति थे और सिख धर्म के लिए उन्होंने अपने अल्प जीवनकाल में ही बहुत से महत्वपूर्ण कार्य किये । उन्होंने अपने सिखों की शिक्षा का समुचित प्रबंध किया, उनके वाणिज्य व्यवसाय को प्रोत्साहन दिया, अमृतसर, तरनतारन जैसे नगरों में कई एक तालाब खुदवाये तथा अपने मत के प्रचारार्थ उन्हें घोड़े का व्यापार करने के बहाने तुर्किस्तान आदि देशों तक भेजा। गुरु अर्जुनदेव के अन्य महत्वपूर्ण कार्यों में ‘आदिमथका संग्रह तथा संपादन विशेष रूप से उल्लेखनीय है क्योंकि वही आज तक सिख धर्म के आध्यात्मिक पथप्रदर्शक का काम करता आया है । गुरु अर्जुनदेव को उसमें संग्रहीत पदों को एकत्रित करने के लिए स्वयं भी घूमना पड़ा । अन्य प्रसिद्वप्रसिद्ध भक्तों के अनुयायियों को भी आमंत्रित कर उनसे अपनेअपने श्रेष्ठ भजनों को चुनवाना पड़ा और फिर सभी ऐसी संगृहीत रचनाओं के पाठ आदि पर गंभीरता के साथ विचार करना पड़ा। ‘आदिप्रंयको उन्होंने गुरु अंगद द्वारा निर्मित गुरमुखी लिपि में भाई गुरुदास से लिखवा कर भादो वदि १, सं॰
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