पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३१३

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२०० संत-काव्य गुपसिधान नानकुछ जयु गढ़, सतिपूरि भर काइड । सरन निवासी सदा अलेपा, समि सह रहिया सम्माइड २६ बनमपतिवृक्ष यहां काष्ठ । बसंतर =आग । अहिंड=है। ही एक (३) एक रूप संगलो पासारा आपे बन आापि बिब उहारा ।। १। ऐसो गिआनु विरलोई पाए। जत जल जाएतल तत लूि सटाए है।रहाद। । अनिक रंग नि मुन्न इकरंग: । अस्प ज'लु अपहो तरंगा है। अपही मंदरु नापही सेवा। जापही जारी अपही देवा 1३। अनापी जोग अपहो जुराता : मानक के प्रभ सवही सूकता ३४१ । पासारा =विस्तृत सृष्टिहै जत . . .दिसटाए = जैसे-जैसे जानते हैं वैसेवैसे स्पष्ट होता जाता है । अनिक . . .इकरगा - सभी विभिन्नताओं में भी अभिन्न है । आराध्य से आत्मीयता (४) तू जलनिधि हम सीन कुमारे ' तेरा नामु धूद हम चत्रिक तिषहारे । तुमरी आस पिचासा तुमरीतुमही संगि सं लीना जीउ ।१ जिड बारिश पी घोर अधाई। जिड निधनु धतु देखि सुषु पाई है त्रिखावंत जल पीबल , तियु हरि संगि इ8 स भोना जीउ क२ा जिड अंधिया दीपक परगासा । भरता चित्रतत पूरस आता । मिलि प्रीतम जि होत अनंदा, तिड हरि रंगि मनु रंगीना जीड 1३है संतन मोकड हरि मारगि पाइथा । साध क्रिपालि हरि संगि गिझताइवा । हरि हमारा हम हरि के बरसेनानक सबढ गुरु सधु दोमा जोड है।४है विषहारे-=प्यास, तुषार्ल। वारिकुबलाक। भरता.. , आसाः = स्वामी को देखते ही आशा पूर्ण हो जाती है। पाइ आः :शत करा दिया। गिझाइन==चस्का लगा दिया। दोना-=दिया। एक मात्र जूही (५) पेढ साथ तेरी ली। तू सूष हर आा असली।