पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३१५

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३०२ संत-काव्य । साध सू रति गुरु भेटिड नानक, मिलि सागर बंद नही अनहेरा 1२t ईधे, ऊधे ==एक ओोर, दूसरी ओर । कह. . . चे=कहीं स्वामी कहीं ससे सबक । कांकड . . वंचा= किसे त्यागूं और किससे सहायता मांडू । अमहा=बिना ढूंढ़ा हुआ नहीं रह जाता। दाना बुद्धिमान्। विमु भा=तु जान लेना अत्यन्त कठिन है । तेरा भेद अगम्य (८) तेरी कुदरत नृहै जाणहि, अवरु न दूजा जाए । जिसनो क्रिया करह मेरे विचारे, सोई तुके पछारें 1१। सेरिमा भगता कड बलिहारा । थानु सुहावा सदा प्रभ तेरा रंग तेरे आपारा १५रहाउt तेरी सेवा तुझते होवअवरु न दूजा करता। भगढ़ तेरा सोई तुधु , जिसनो टू ए घरता ॥२है। नू बड़ दाता तू बड़ दामा, अउरू नहीं को दूजा। स समरभुसुनामी मेराहज किया जाणा तेरी पूजा।।३है तेरा महुलुअगोचर मेरे पिआरविष तेरा है भाणा। कई सानक लहि पइथा हुआारे, रख लेवलु मुगध जाणा ।४। प्रतपाल (६) प्रभुसमेभरो इत-उस सद सहई। मन मोह मेरे जीवन को पिया, कवनु कहा गुन गाई।रहा।। घोल विलाह लाड़ लाड़ाई , सदा सदर अनदाई। प्रतिपाल बारिक की निआईजैसे साप्त बिताई 1११ तिरु बिनु निमष नहीं रह सकी, बिसरि न कब जाई। कछु नानक मिलि संत संगति ते, मगन भए लिव लाई ।।२है अनवाईअनामंबित कर के। निमाई=समान, भांति। रहस्यमय (१०) कवन रूड तेरा आराधड। कवन जोशु काइनर ने साथ १!