पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मध्ययुग (पूर्वार्द्ध) ३०३ कवन .तु जो तुझइलें गावऊ । कबन खेल पारब्रह्म रिझावड ।रहाउ। कवन सु पूजा तेरी करड। कदन सू विधि जिहु भवजल तरड १२। कबन तप जितु तपीया होइ । केवलु सुना उसे मलु घोइ ।।३। गुण पूजा मिश्राम बियन नामक सगल धाल। जिस करि किरपा सतिगुरु मिले दइआल ४१ तिहो गुरु तिनही प्रभुझ जाता । जिसकी सानि लेइ सूषदाता ॥हाड जारी खेल = खेलमनोरंजक कृत्य। घाल कर डाला (११) भु बल बोर वह सुष-सागर ।गरत परत गहि लेहु अंगुरीआर ।रहा।' नवनि न सुति नैन सुंदर नही अरत दुग्रारि रटत पिंगुरी ।१६ दोनानाथ अनाथ करुणा, साजन मीत पिता महतरीन। चरन कबल हिरई गहि नानक, भैसागर संत पारि उतरीअ है।२ा। गरत परत =गिरते पड़ते हुए फो' पिंथुरिआ =पंगुअसहाय । प्रेमा भक्ति (१२) अंसी प्रीति गोबिंद सिड लागी । मोलि लए पूरन बड़भागी Iरहा। भरता पेथि विगत जिज नारी निड रिजनु जीब नामु चितारी\१। पूत पषि जिड जीवत माता 1 श्रोति पोति जतु हरि सिंह रात १२है। लोभी अनडु कड़े पेषि धना । उन चरन कमल सिड लागो सन ३। बिसरु नही इ लिलु दातार। मानक के प्रभ प्रान आधार १४ लिलए =धारण कर लिया। चितारी==स्मरण करके । श्रोति पोति =ओतप्रोत, पूर्णत: । दातार= धनी, स्वामी । (१३) बितरत नाह सन ते ही। अब इडु प्रीति महा प्रबल , आान बिखें जरी रहा। 6द कहा तिनगि चात्रिक, मीन रहत न घरो। गुन गोपाल उचर रसना, टव एह परी\१।