पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३२

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अपने पंथों के सिद्धांत स्पष्ट करने के उद्देश्य से अपने-अपने ढंग से कतिपय पुस्तकों का निर्माण किया। इसी प्रकार उस समय राजा राममोहन राय (सं॰ १८३५-१८९०) तथा स्वामी दयानंद (सं॰ १८८१-१९४१) जैसे सुधारकों द्वारा प्रभावित वातावरण के अनुसार कुछ कुरीतियों को दूर करने के प्रयास भी होते जा रहे थे। इतना ही नहीं, इस आधुनिक युग के अंतर्गत जो स्वामी रामतीर्थ (सं॰ १९३०-१९६३) एवं महात्मा गांधी (सं॰ १९२६-२००४) जैसे संत हुए। उन्होंने मानव जीवन के केवल आध्यात्मिक अंग के ही नहीं प्रत्युत उसकी पूर्णता के भी विकास की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया। जिन व्यक्ति विकास, पूर्णांग साधना आदि बातों को कबीर, गुरु नानकदेव तथा संत दादूदयाल ने केवल संकेत रूप से ही ही बतलाया था उन पर इन्होंने पूरा बल दिया। संतों का साधसंप्रदाय वाणिज्य एवं व्यवसाय की ओर पहले से ही प्रवृत्त था। राधास्वामी सत्संग की एक शाखा शिल्पकला विकास में भी लग गई। महात्मा गांधी ने प्राय: सभी प्रकार के ऐसे क्षेत्रों में उन्नति को प्रोत्साहन दिया। इन आधुनिक संतों के कारण विचार-स्वातंत्र्य, निर्भकता, विश्वप्रेम, सत्य, अहिंसा, विश्व शांति एवं विश्व नागरिकता जैसे उच्च नैतिक गुणों को अपनाने की एक बार फिर भी प्रेरणा मिली। संतों के 'भूतल पर स्वर्ग' वाले प्राचीन आदर्श की ओर एक बार सारा संसार फिर से आकृष्ट हो गया।

संतमत

संतमत किसी पंथ वा संप्रदाय के मूल प्रवर्तक द्वारा प्रचलित किये गए सिद्धांतों का संग्नहमात्र नहीं है। यह उस विधान का भी परिचायक नहीं जो भिन्न-भिन्न संतों के उपदेशों के आधार पर निर्मित किया गया हो। इसे किसी भी ऐसी व्यवस्था का निर्दिष्ट आदर्श से कोई संबंध नहीं जो इसके अनुयायी के भी अनुभव में आकर अपने