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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३२२

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मध्ययुग () ३० ? काहें मन डोलता, हरि मनसा पूरणहार। सतगुरु पुरखू विश्राइ : सभि दुष्प विसारण हार ५३ सेज बिघाई कंल , कीआा ह2 सदर । इती मंति व , के बलि पहिा हार ।६!! नामक जिस बिनू घड़ी न जोयणा, बिसरे सरां न बिंद। निस लिप्ड किड मम हसि, जिसह हमसे दद ३७। मेरी मेरी किम करहि, पुत्र कलश सनेह । नानक नाम विहृ ष्ण, निमुणी ऑादी छह 1८। पहिला मरण अबूलि, जीवण की शुद्धि आस । होटु सभना की रेप्यु का, तड आउ हमारे पास है।e। मुआ जोवंद उष, जीवंदे मत्रि जानि । जिन्हू सुहजत इकसिडते मणस पधान ११०। फिट =तिरस्कार के योSय 4 रुति--ऋतु । यदि ==शबू । वादि -व्यर्थ। बयालिया दिखला दिया है, जतला दिया। लोचा अभि लाषा । लोडिलहु-=खोलू । मनस == मनोरथ 3 इसी . . .समावई न्=इतना ही हम दोनों के बीच बाधा है कि। बिसरे...fबंद =जिसकी स्मृति एक क्षण के लिए भी नहीं जाती है चिद=ध्यान, ख्याल है रेणकाः :शल । मुआ. . जान=जिन्होंने संसार की ओर से मरे हुए को ही जीवित समझा तथा जिन्होंने सांसारिक जीवन को मृत्युवल माचा । जिम्हा. . . .कासिड = जिन्हें केवल एक परमात्मा से ही प्रेम है। संत बननाजी संत वपनाजी नराणा नगर के निवासी थे, जो सांभर से तीन कोस पूर्वदक्षिण की ओरबसा हुआ है अर जहां दादूजी अंत समय में रहा करते थे । कहा जाता है कि वे वहीं उत्पन्न हुए थे और उनका देहाऋतान भी वहीं पर हुआ था । परन्तु प्रसिद्ध है कि उन्होंने दादूजी