पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३२५

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३१२ संत- बटाऊ उहि बाट का, म्हारो संदेसो सिह हाथ । आलो नाहों रहेंकाहू सा जन साथेि ।६। ज्यूं बनके कारण इस्ती , चकदी पले पारि है। यों बना दूसरे रामहूँज्यूँ उलगाँणा की नारि ।।७)। विचा . . . रे =हमारे आपके बीच अंतर है। डूगरपहाड़। पंश छियांपकें। एंजर शरीर में : प8 =बिना। ओोघट -उबड़-खाबड़। घोहड़ा =विन। ये =भयआशंका। तुर =रूदन करे, बु:ख का अनुभव करता है। उलगण =प्रवासी बा परदेशी। (३) बीछडघा राम सनेही रे, म्हारे मन पछतावा यही रे । बीड़िया बन बहिया , म्हारे हिवड करवत बहिया रे । बिलयी सखी सहेली रे, ज्यू जल बिन नागरबेली रे ११। बा मुलकनि को छिवि छांहो रे, म्हारे रह गई हितें माहों में । को उणिहारे नहीं, हो ढूंढ़ रही जगमाही रे है२। सब फीको म्हारे भाई रे, मंडली को मंडण नाहो रे । फोंण सभा में सोहे रें, जाको निर्मल बांणो मोहे र ३ । भरि भरि प्रेम पिलावे रे, कोई दाढ़े आण मिलावे रे ॥ ‘वघला ’ बहुल जिसूरे रे, दरसण के कारण रे रे ।४। बीछडया दूर हो गयामुझसे विमुक्त हो गया। हिवड़े हृदय में। करवत था। मुलकर्मि=मुसकान। उणहारे =समान प्राकृति वाला। संउण=शोभा, शिरमौर, अग्रणय। बिसू==विलाप करता है, स्मरण करकर के दुःखी होता है। । (४) थागे र ण गोयंबाम्हारे आगुणियो कान न कीजै । हों तो थाहते थांई रह5 , पोंने रागति दिढ़ दी रे ।टर। तुम्ह बिना डहायोथो रे, थारे संग्य न जागी रे बाएँ ही चोरासो भरम्यो, लषी म लागी रे १। ।