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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३२७

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३१४ संत-ब्पि संत बावरी सहिवा बावरीपंथ के मों में सुरक्षित वंशावली से विदित होता है। कि वः व ो । 'द : मोनार्षद को frय भर में (इन मायानंद के गुर दयानंद थे जो रामानंद के शिष्य थे और ये दोनों गुरुशिष्प अंर्तमान गाजीपुर जिलेउत्तर प्रदेश) के पटना गांव के निवासी थे । बावरी साहिबा के जन्म स्थान वा जीवनकाल का पता नहीं चलता। केवल इतना ही कहा जाता है कि ये वूिमो उच्च कुल की, महिला थीं और सत्य की खोज में पड़कर इन्हें बहुत कुछ कष्ट भी झेलने पड़े थे। उक्त वंशा वली के क्रमानुसार ये अकबर बादशाह (सं० १५९९ -१६६२) की समकालीन जान पड़ती हैं । इस प्रकार इनका समय भी लग भग वही हो सकता है जो मन दादूदयाल और हरिदास निरंज भी का था । बावरीपंथ के मठों में इनक्र एक चित्र मिलता है जिसम इन्हें एक विशेष वेशभूषा में दिग्ख़लाया गया हैकिन्तु उनके द्वारा भी इनके व्यक्तितत्र व इनके मत को विशिष्ट बातों पर कोई स्पष्ट प्रकाश पड़ता हुआ नहीं। दीखता। इनका ‘बावरी ’ नामपगल अर्थ का द्योतक होने के कारण, इनका उपनाम सा ही जान पड़ता। है । इनके जीवन की घटनाओं का कुछ भी परिचय उपलब्ध नहीं है और न नीचे दिये गए दो पक्षों के अतिरिक्त, इनकी कोई रचनाएं ही मिलती है जिनके आधार पर कुछ अनुमान किया जा सके । ये दोनों रचनाएँ (यदि वास्तव में, इन्हीं की हैं तो) इन्हें एक उच्च कोटि की साधिका के साथ ही अच्छी कवियित्री भी सिद्ध करती हैं । सवेया बावरी राबरी का कहियेमन ई के पतंग भरे नित भांवरी। भांबरी जानह स त सुजान, जिन्हें हरिरूप हिये दरसाबरी t .