पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३२८

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पए () ३१५ सांवरी सूरत मोहनी सूरतदे करि शाम अनन्स लखाबी। खांदी सौंझू हारी प्र, रवि रावरगु देख ई मति बबरी है१। खांवरी सह = में शपथईक कहती हूं। गतिविचित्र लोला। प्रभात अजपा जाप सकल घट बरहै, जो हासे सोझ पे खा। ग्र रुगम जोति अगम घर बासा, जो पायर सइ देखा । में बन्दी हाँ पर्म तत्व की, जहण जानित कि भोरी। कहत बावरी स। हरे जीरू, सुरदि काल पर डोरी है।२५ अजय जाप -प्रनाहल नद। सल . बसें - ट सत्र की काया में सदर चलता रहता है । बन्दी=दासो , साधिका। पर्मतत्त्र-=पर मारमतत्व। भोरी=पगलो, बावलो। बीरू-बाबरी-शिष्य बीरू साहब । संत बीरू साहन बोरू साहब बावरी साहिबा के प्रमुखअथवा कदाचित् इकलौते, शिष्य थे और संभवत: किसी पूर्वी जिले के ही निवासी थे । इनके जन्मस्थान दा जीवनकाल के विषय में कुछ पता नहीं चलता। अनुनान होता है कि इनके आविर्भाव का नय विक्रम की १७ वीं वातब्दी का उत्तरार्द्ध रहा होगा और बावरी साहिबा का देहांत हो जाने पर ये उनके उत्तराधिकारी रहे होंगे 1 वावी पंथ के मठों में पाये जाने वाले इनके एक चिन द्वारा यह भी सूचित होता है कि ये में ' होने के साथ ही संगीतज्ञ भी थे । परन्तु इनके जीवन का कोई भी विवरण अभी तक उपलब्ध नहीं है । संग्रहों में इनकी केवल तीन रचनाएँ पायी जाती हैं जिनका पाठ कुछ संदिरथ जान पड़ता है । किन्तु इनके द्वारा भी इनके पूर्वीपन एवं साधना-पद्धति पर कुछ प्रकाशन अवन्य पड़तi है 1