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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३३०

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मध्ययुग () ३१७ ताह =स्वामी, परनतब।रकाब :=ड़े की काठी का पावदान, यहां पर आगे बढ़ने को लोयनभूमि। संत गरीबदासजी (दादूपंथी) गरीबदासज संत दादूदयाल के प्रधान ५२ शिष्यों में से एक थे। और ये ही, उनका देहांत जाने परउनके उत्तराधिकारी भी बने थे । अनुभूति के आधार पर इनकf जन्म संवत् १६३२ बतलाया जाता है और इनके देहा बसन का समय संवत् १६९३ में ठहराया जाता है । इनके विषय में यह भी प्रसिद्ध है । कि ये संत दादूदयाल के ज्य5 पुत्र भी थे औीर इनके अनुज का नाम मिस्कोनदात था 1 दादूजी के एक अन्य शिष्य जनगोपालजी ने ‘दास जी को जन्मा' नामक अपनी रचना में इन्हें, दाहू पिता प्रगट है । ज, गरीबदास सुत उपयो ताके' कहकरस्पष्ट शब्दों में, उनका पुत्र माना है और भक्तमाल' के लेखक राघोशासजी ने भी इन्हें इसी प्रकार ‘दाइसुवन' कहा है ? फिर भी गरीवदासजी की बणीके संपादक स्वामी मंगल दासजी इस बात में अपना संदेह्न प्रकट करते हैं और कहते हैं कि गरीब दासजी महाराज दाजी के आशीर्वाद से उत्पन्न हुए थे, वाल्या- वस्था में महाराज की शरण आ जाने से महाराज के पास पुत्रवत् ही माले गए थे। अतः वे दाइजी के औरस पुत्र न होकर वास्तव में, उनके बरद पुत्र 'पोप्य पुत्र एवं परम विश्वसनीय शिष्य थे ।' अपने इस अनुमान की पुष्टि वे इस वात से भी करना चाहते हैं कि गरीब-. दासजी ने दावूजी को सतगुरु, गुरु एवं परम गुरु तो कई स्थलों पर कहा है किन्तु पिता वा जनक कह भी स्वीकार नहीं किया है और इसके लिए उन्होंने इनकी कई पंक्तियाँ भी उद्धृ त की हैं । गरीबदास जी, एक उच्चकोटि के साथ होने के अतिरिक्त, कुशलक्रवि, संगीतज्ञ एवं वीणाकार भी थे । कहा जाता है कि इनके .