३१८ संतक्राप
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ललित संगीत से प्रभावित होकर, जहांगीर बादशाहू ने इनके रहने के लिए एक बारहदरी और पानी पोने के लिए एक कूप बना दिया था जो ‘गरीदसागरकहलाता है । कहते हैं कि दादूजी के प्रसिद्ध शिष्य रज्जवजी से इन्हें कुछ समय के लिए मतभेद हो गया था जो इनकी मृत्यु के समय दूर हुआ । इनक्री बवषयों की संख्या k ३००० बतलायी जाती । है, परंतु इनकी जो रचनाएं उपलब्ढ हैं वे इससे बहुत कम हैं। इनकी प्राणियों का संग्रह गरीबदास जी की वाणी' के रूप में जयपुर से प्रकाशित हुआ है जिसमें अनमै प्रबोध, ‘साखो’, ‘चौबोले' एवं पद संग्रहीत है । इनकी पंक्तियों में कहींकहीं दुरूहता आ गई है, किन्तु फिर भी इनकी वानियां इनके गूढ़ प्रेम तथा स्वानुभूति का अच्छा परिचय देत हैं। पद सच्ची प्रीति (१) प्रोति म गृहै जोवको, जो अंतर होझ। तन मन हरिके रंग रंयों, जान ऊन कोई ।lटेर। लष जोजन देही रह, चत सनस्दुल रहे । ताको का न अजर, जी हरिप्रेम भाव 1१। कंवल रहे जल अंतर, रच बसे अकाल । संपष्ट त बही विस है, जब जोति प्रकाश 1२॥ सब संसार असार है, मन न मैं नही । गरीबदासनहि बीस, चित तुही महुि 1३। लूटे ==टूटती, नष्ट होती । ऊजरे=बिगड़ता, असफल होता। संपट=संपुट मुकुलित दल। दिनसि है =विकसित होंगे, खिलेंगे। अंत मखी साधना (२) तन खोजें तष एवं दे । उलटो चाल चले जे प्राणी, सो सहजे घर अधदे रे टेक।।