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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३३३

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३२ संकाय धर अधार नहीं सो दरएसीषा पत्र न होई ॥ डंपल फली पहुप पर नहीफलरूपी सब सोई ॥१। ताकी छाया सब जग बरतेबिन जायें सुख दूरी । सरवर बावर कंवल बेसरा, क्यूं पार्श्व गति उरी ।।२। पर भाग भंवर अनमें बार, आक पलस न भूले हैं॥ गरीबदास' स्वांति तनि , अर्ष सरोवर भूले n३। अनुपम =अद्भुत । तीन्यूवैहिक, दैविक तथा भौतिक के । बरते = उपयोग में लाता है। इ=अपूर्ण। स्वाति=शति। अर्थ ==अक्षय अविनाशी । आत्मनिवेदन (५) पर पाल कैसे ३ माया सरिता तरुन तरंगति, जल जोवन को वैसे ट।। नैननि रूप नासिका परिमलजिया स्वाद श्रवण सुनिबे को है। मन मार मोहे ऐसे ११। पंचो इन्द्री चंचल चह्न बिसि, असथिर होहि कर तुम तंसे । गरीबधासकह गांव नाव दो, खेइ उतारो जैसे १२। तरनप्रबल। परिमल ==सुगंध। असस्थिर =स्थिर, एकनिष्ठ । खंइ=चला कर। साखी सुकृत सारग चालतां, घिघन बचे संसार । दुष कलेश यूटे सर्दीजे कोइ चले विचार। १। जानि वर्ल को अधिक , अणजार्गों से जाइ। लोहा पारस पर सिलेसो सब कनक कहाई ।२॥ अंजन भाष समान जलभरि है सागर पीव ॥ अर्जी सी उपजे तन त्रिषातो वे पीव ।।३।