सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३२२ संत-काव्य साधना का मार्ग बतलाया और इन्होंने तीखली पहाड़ी की गुफा में तप किया है फिर वहां से निकल कर में नागौर, अजमेर, टोडा, जयपुर एव शेखावाटी आदि तक पहँटन करते रहे और अंत में डीडवणा लौट आयें जहां पर, अपने शिष्यों के साथ सत्संग करते हुए, सं० १७०० की । । फाल्गुन मुद ६ कई परमधाम सिधारे। संत हरिदास निरंजनी की विविध रचनाओं का एक संग्रह ‘श्रीहरि पुरुषजी की वाणी' नाम से प्रकाशित हो चुका है । इसमें संगही पच्चों में । से अधिकांश का पाठ शुद्ध एवं प्रमाणिक सही जान पड़ता अगर कई स्थलों पर संदेह बना रह जाता है । फिर भी, इसे कुछ सावबानी के साथ अध्ययन करने पर पता चलतप है कि इनका रचयिंता ए योग्य व्यक्ति रहा होगा। इसमें आये हुए पदों, भूलनों, कुंडलियों साखियों की पंक्तियां अनेक स्थलों पर बड़ी सरस एवं गंभीर है । उनमें योगमूलक साधना के साथसाथ भक्ति एवं ज्ञान की महत्वपूर्ण बातों पर भी स्पष्ट प्रकाश डाला गया है और बार्मिक सहिष्णुता तथा सदा चरण की अर भी ध्यान दिलाया गया है ! इन रचनाओं की भाषा में राजस्थानी शब्दों तथा मुहावरों का पूर्ण समावेश है, किन्तु कवि की सुबोध शैली के कारण ये सर्वसाधारण के लिए भी वैसी कठिन नहीं । सच योग साधना (१) अक्षु अस्ण बस ठा, जब लग सन सिराम न पाब है। पख तजि फिरे न पूटा ।ौर। शाम गुफा जाएँ नह जोगी, अगम अरथ कहां बू। पांच अगत्रि में डि पडि दा, बा सीतल दौर में सू क१५ बिबि बिकार बालि अरि इंषण, घूई ध्यान न धारे। ब्रह्य अरानि आाकास न , तो पॉरा क्यूं मारे हैं२॥