पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३३६

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मध्ययुग (पूवर्द्ध ) ३२३ निगम अगम तहां लगे आासन, गरब नाद नित बारे। नगरी महि मुरलि बसि भूखाजहां तहां उलुि भाऊ ।३। स्म महि पवन अंकि लें उलटा, पर जोग उर था। जन हरिबास निवास भरम तजि, निरगुण जस निसतारे ।४। (१आसण वे सण=आासन मार कर ध्यानस्थित होना। परवजि= . विषय पक्ष का स्याग कर। विविध. . . इंघण =विविध मनोविकार शत्रुओं कूड़े जला कर । पर.. .मारे =रसायन को सिद्धि से क्या लाभ होगी? भगतभा सदी गरीबी (२) बाबा एह गरीब नूठी, सन्म मरु प्रवन होऊए फूटा। मनलार फिझ न पूठी !।र।। त्रिविध ताप की कन्था पहरीसनी टोप सिर जाके रागने की कानों , कहा गरीबो अा है।१। परधा भेद रेल यू की स्थू, महें मढ़ीं बसि जावें । वरन के भलेख राम नहीं , बिद अनंत करि पीई । 1२। पांच चोर परदेश पहुँता, सिलि खेले सा सही। भन जोर खि कह गरीबी, असलि गरीबी नाही ।।३tt जन हरिदस अान तजि अनथराम नाम बृत था। राग द्वेष कालू सदै नाही, असल गरीबी तारे ११४। एह गरीबी =दिखा फफोरपन्न । सनी =अहंकार से यान=अन्य, दूसरा । मेरा एकमात्र हरि (३) अब में हरि बिन और म जांचू, अजि भगत समन नांडू ।टेर। हरि मेरा करता हूं हरिकोया, में रख मन हरि ढूं दोया के ११। रात ध्यान में हम पाया, जब पाया तब श्राप गमाया २?