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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३५३

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३४० संत-काव्य माथ==मस्तक। नाथ —अपने स्वाती । दरगह =बर्बर में। दिवान = दोवान्न, उच्च कोटि के के पुरुष। छह =न्यून कोटि वाले । हरिके =अनुभव कर । ऐन : अश सदा, सच्चे । 'णा । - बहुत कुछुडअघिक। चविच. .. का --चारों प्रकार से , सभी प्रकार से ।न. . .हाथ =वश में नहीं आया । एं। . . .का ==आठ पंसेरो बालाअर्थात् अपना मन । सीष =शिक्षाउपदेश वां स शाह । सुन-सुन ले नाड़ो आइगढ़ बा संकट के समय काम देगा। बांकी बार संकट बा कठिनाई आ जाने पर। ऐस=पुष्य, सत्कर्म। सारी अपने पूरे धन में से ।कौर कुछ भाग । और दूसरों को भी =, अथवा। कोर-=क्ड़ । डर=रातदान देना । बसत =बस्तुबात करें- क्य। मेल्हे नडाल करबंद कर के 1 बासण. वर्तन, घड़े आदि में कसत है =ऊपर से बांधता है । जाप -जाफत अरबी शब्द जियाफ़त =दावत, भोज से ), उत्तयादि । ठाम -स्थान पर, अपनी जगह पर, ज्यों का त्यों अथवा स्थिर। धणी =मालिक वा ईश्वर के नाम पर। गुरु तेगबहादुर गुरु तेगबहादुर सिखों के छठे गुरु हरगोबिंद के पुत्र थे और उनका जन्म वैशाख बदि ५, सं७ १६७९, को हुआ था । । गुरु तेगा- बहादुर के बड़े भाई गुरु दि ता थे जिनके पुत्र हरराय गुरु हरगोबिंद के उत्तराधिकारी बनाये गए थे और गुरु हराय के पीछे उनके पुत्र हरकृष्णराय गुरु बने थे। गुरु तेग्र हादुर इसी गुरु हरकृष्ण राय के अनंतर नवम सिख गुरु के रूप में गुरुगद्दी पर बैठे थे। गुरु तेग बहादुर अपने बचपन से ही बड़े शांतिप्रिय तथा मितभाषी थे और इनके प्रति सभी लोग बड़ी श्रद्धा का भाव रखते ये । फिर भो, निकटव सिखों में ट्रेषभाव तथा षड्यंत्र की भावना प्रबल हो जाने के कारण, इन्हें कई बार अनेक प्रकार के कष्ट झेलने पड़े और ये अंत तक चैन से नहीं रह सके !