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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३५५

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३४२ संत-काव्य सांसारिक मानव (१)। प्रानीकड हरिज मुनि नहीं थे। अहिनि िमग रहे माइन , कह कै से गुन गावै ।रहाउ। पूत मीत साइना ममता सिं, इबिधि आयु बंघावे ॥ त्रिगत्रित ना जिजड झ ठो इइ जग, देषि तास उछेि बाजे क१३ गति मुकति का कारणु सुनामी, मूढ़ ताहि बिसरा " जन मानक कोटनकोऊ, चेज राम को पवें ५२३। जिउतृत्य, समान । (२) लाधो इहु जगु भरसू भुलाना। राम नाम का सिमरतु छोड़ियामाइन हाथि बिकाना गेरहार्ड । माद पिता भाई गुप्त बनिता, तारे रस लपटाना है जो घनु बनिता न भुता के मद , अहिनिसि रहे दिवाना ५१। दोन अड़चाल सदा दुखभंजन, ताक्षिड मन न लगाना । जन नानक कोनमें किनकूगुरमुख होइ पाना है। लगाना = लगाता, जोड़ता। मनोव्यथा (३) विरथा कहर कम सिड सनक्रो। लोभि ग्रसिद्ध बहू दिस धवतनासा लागिड धनको रहाउ।। सुध हे बहुत दुर्घ पावतसेव करत जन जनकी ॥ दुआरहि हुआार युआन जिउ डोलतनह सुध राम भजन की ।१। मानस जन आकारय घोबत, लाजन लोक हसन की । नानक हरि जब किड नह गावतकुमति बिनासे तनको ।२॥ विरया । व्यथा, चिता। नह=नहीं। लाजन=लोक लज्जा के कारण । तनको =अपनी ही।