पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३४हैं संध्ययुग () । दारमीत पूत रथ पति, धम पूरन सभ सही है। अवर सगस स्विस्थमा ए जानलू , भजन्तु रामको सही १। फिरत फिरत बहुने जब हाशि, महनस देह लही। नानक कहत मिलन की बरीश्रा, सियरत कहा नही ५२है। ए - यहूर मन मनुष्य को । बरीन =अवसर पर ? मन की करतूत (१०) साई मनु मेरो बस नहि है निस बासुर विपिअन डेड घावत, किहि विधि रोकज ताहि ५रहाउ। वेद पुरान सिद्धिति के स्वति सुनि, निम्ब नहींए बसावे ॥ परधन परदारा सिउ रचिडबिरथा जनसू सिरसव 1१। मदि साइन भइड बावरोसूत नह कयू गिनाना। घटहों भीतर बसत्र निरंजन, ताको मरतु न जाना ३१। जबही सरन साधको आइए, दुरमति सगल विनासी ॥ तब नानक चेतिउ चिंतामनि, काटी जमकी फांसी ॥३। बसावे =धारण करना है। सिराधे =व्यतीत करता है । मदि

घनड में है

समभाव की स्थिति (११) Gि साधो मन कई मान लिआगढ़ । कास मोघु संगति दुरजन की, ताते अहिनिसि भागड ।रहाउहै सख व्ष दोनो सस करि जाने, आउरु मान अपमाना है। हरष सोगते रहे अतीता, तिनि अगि तनु पछाना 1१। उसन्तति नंदा बोऊ तिभाग, धोजे पहु निरबाना है जन नानक इg खेलु कठतु है, किन्हू गुरमुषि जाना ।२५ अतोता =छप्रभावित तटु =, रहस्य। खेलु=रहनी कठ= कठिन है।