पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३६५

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३५२ संतकब्य से ही कोमल हृदय के व्यक्ति थे और खेलते समय मार्ग व गली में कांटां वा कंकड़ पा लेने पर उसे, दूसरों को कष्ट से बचाने के उद्देश्य से कहीं दूसरी ओर डाल दिया करते थे । साधुसेवा की लगन इन्हें इतनी थी कि, किसी ऐसे अतिथि के घर पर आ जाने पर उसके लिए सभी प्रकार से उद्यत हो जाते थे । । इनके माता-पिता ने इन्हें कुछ वर्ड होने पर कंबल बेंचने का काम सौंपा और ये प्रत्येक आठवें दिन पेठ जाने लगे । एक दिन जब ये बचे हुए कंवल वहां से वापस लाने लगे तो भारी होने के कारण अपनी गट्ठर इन्होंने किसी अपिरिचित मजदूर को देदी । वह मजदूरइनसे कुछ अधिक तेज चल कर इनके घर पहले ही पहुंच गया है किन्तु इनकी माता को उस पर संदेह जान पड़ा जिस कारण उसे, उन्होंने कि लाने के बहाने एक कमरे में बंद कर दिया ? मल्ल के आने पर जब उन्होंने कंवल सहेजने के लिए कमरा खोला तो मजदूर को उसमें नहीं पाया और आश्चर्य में पड़ गई । इधर मल्ल पर इस घटना का ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसने उस मजद्र को स्वयं भगवान समझ लिया तथा पड़ी हुई रोटो को भी उसका श्र साद रूप मान कर उसे ग्रहण करता हुआ भगवर्शनों की लालसा में अपने को निरंतर तीन दिनों बंद खा। तीसरे दिन वह मलूकदास होकर ही निकला । मलकदास ने फिर किसी मुरार स्वामी से दीक्षा ग्रहण की और चारों ओर देशाटन करते हुए सतसंग में लगे रहे । ये अपने अंत समय तक गाऊँस्थ्य जीवन व्यतीत करते रहें और प्रसिद्धि के अनुसार१०८ वर्ष की आयु पाकर इन्होंने अपना चोला छोड़ा। इनकी शिक्षा के विषय में कुछ भी पता नहीं, किन्तु इनकी रचनाओं की संख्या ९ बतलायी जाती है जो सभी प्रकाशित नहीं है । इनकी फुटकर बानियों का एक संग्रह ‘मलकदास जी की बानी’ के नाम से ‘बेलवेडियर प्रेसद्वारा प्रकाशित हो चुका है । इनकी रचनाओं में इनके अटल विश्वास, प्रगाढ़ भक्ति एवं विश्वप्रेम की झलक सर्वत्र लक्षित होती है । इनके प्रत्येक कथन