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पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३७१

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३५६। सतता रम मेरे प्रान रहमान मर दीन ईमान, भूल गयो भैया सब लोक लाज धोई है । कहृत म दूक में तो दुविधा से जान ली, जोई मेरे मन में नैनन में सोई है.। हरि हजरत मोह मचव मुकुन्द को साँ, छोड़ेि केश राम ने तो इससे न कोई है ।1१४ सुपने के सुध क्ख इत्रि सहि रहे लू ढ़ मर, जानत हमारे दिम ऐसहीं विहाशेंगे । क्या करेंगे भोग अच्छो सुन्दरी रमैो नित्त, छांडू को ले चारि जू न बूंद बूंद खायेंगे । सोकरा सो काल है कलसी सो लपेट है, चंल के के तले दबे दबे चिचयाँयीं । कहृत मलू कदास लेखा देत होइड बुक्स, बड़े दरबार जय अं]त पछिजायेंगे है। सौं=शपथसइ । खुद ढूंद =उछलकूद कर। सीकरा शिकस बाज पक्षी । कलसरी -=, एक चिड़िया जिसका सिर काला होता है। । चिचियांगे =चबाने बाचलने लगेंगे । सवैया दोनदयाल सुनी जबर्तीतबहिया में कछ ऐसी बसी है। तेग बहाय के जाऊँ कहां हैं, तेरे हित की पष्ट बेंच कसी है । तेरोई एक भरोस मलूक को, तेरे समान न दूजो जसी है। एहो मुरारि चुकरि कहाँ अब, ी हंसी नह तेरी लैस है ।१। साखी मका सोई पोर है, जो जाने पर पीर। जो पर पीर न जातहीं, सो फीर बेपीर.१।