मध्यपुर (पूर्वाह्न ३५६ बहुतक पोर कहावते, बहुत करत हैं भंस। यह मन कहर खोदय का, सारे सो दुरबेस ॥ २ पीर पर सब कोइ कहेपीरे चोन्हत नाह। जिम्दा पीर को मारिक, सुरह ढूं ढ़न जाए ।।३। जहां जहां बच्छा फिरंजहां तहां फिरे गाय । कई मदू जहूं संत जन, तहां रमैया जाय ।४, भेष फ़ कोरी के करं, मन नह श्रावं हाथ । दिल फकीर जे हो रहे, साहेब तिनके साथ 1५॥ जीवई से प्यारे अबिक, लार्म मोही राम। बिन हरि नाम नहीं सुऔर किसी से काम ६है। वह मलूक हम जगह ते, लोन्हीं हरिकी ओोट। सोवत सुख नव भरि, डात्रि भरम की पोट ७। रढे भरोसे राभ के, बनिजे कबहूं न जाँच। दास मलू का यों कहेंहरि बिड़वं में वांछ ।८। औरहि कैधता करन, तू मत सारे अह जा मोदी राम से, साहि कहा परवाह ।e। रा राम आसरन सरन, मोहि अपभ करि लेह। संतन संग सदा करते, भक्ति मजूरी दg 1१०। के टिन पियाला प्रेम का, पियें जो हरिहे हाथ। चारो जुग माता है, उतरे जियके साथ है११। सब बाले हिरदे बसें, म पखावज तार। संदिर ढूंढ़त को फिईमियाँ बजावन हजार 1१२41 कर पखावज प्रता, हृदय बजावें तार । 'मैं नाव मगन , तिनका बनता अपार है१३। जब लग थो अंधिधार घर, आस थके सब चोर। जब मंदिर दोपक बरयो, वही घोर धन शोर म१४।
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