पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३७३

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३६ संतकाव्य मन मिरगा बिन मुंडका, चह्न दिस चरने जाय। हाँक ले प्राया तान तब, बाँधा ताँत बिकाय ।। १५।। जो रे घट प्रेम है, तो कहि क्रहि ससुझाब। अंतरजामी जानिद, अंतरगत का भाव है4१६। सुमिरन ऐसा कीजिये, दूज लखें न कोय। आठ न फरकत , प्रेम राखिये गोय 1१७। माला जपों न कर जपों, जिन्य कहीं न राम । सुमिरन मेरा हरि करंमें पाया बिसराम क१८। जे दुखिया संसार में, खवो तिनका दुक्ख । बलिद्दर साँप मलूक को, लोगन दीजे सुक्ख ।१७। पोर सभन की एकसीम रख जानत नाहैि। कॉट से पीर , गला काट कोउ खाद ।२०। सब कोड साहब बन्दते, हिन्दू मूसलशान । साहेब तिनको बदता, जिसका डर इमान 11२१। दया घबमें हरदे बसंबोले अमृत वैन । तेई ऊंचे जानियेजिनके नीचे नैन २२है। कोई जोति सके नहीं, यह मन जैसे दव। याहे जीते जोत है, अब में पायदे भंव।२३है। जेह .ख संसार के, इकठे किये बटोर। कन थोरे कांकर घने, बेखा फटक पछोर ५२४। काम मिलावे राम को, जो राखे यह जीति । दास म का यों है, जो सन आई परतोति ५२५" प्रभुता हो को सब मर, प्रभु को मरे न कोय। जो कोई न भु को मरे, तो प्रभुता बासी होय (२६। कहर खदायकानूहंदी संकट का प्रतीक हैं । श्रोट=माश्रय। पोट =पोटली, बोझ। बि26 =बिढते का कमाते हैं । मंजूरी =मजदूरी। थोथारहा सूस थ. -=भरपेट चुराते रहे । ठौर ा दुरुस्त, ठीक कम = अम्वत् असली । कांकर=के समान निकृष्ट श्रेणी का।