के रज्जबजी, सुंदर दास, गुरु गोबिंद सिंह, चरणदास, आदि ने उनका और भी अधिक प्रयोग किया और उनके साहित्यिक रूप की ओर भी ध्यान दिया। इस काल के कुछ संत कवियों में भाव के ही समान भाषा एवं वर्णनशैली को भी महत्व प्रदान करने की प्रवृत्ति स्पष्ट दीख पड़ती है। मुरु गोबिंद सिंह के लिए यह भी प्रसिद्ध है कि हिंदी के कुशल कवियों को वे अन्य राजाओं महाराजाओं से कम सम्मानित नहीं किया करते थ। अपनी निजी रचनाओं तथा उन कवियों की स्वतंत्र एवं अनुवादित कृतियों का उन्होंने एक वृहत्संग्रह भी प्रस्तुत करा लिया था जो तौल म ३ मन १५ सेर तक भारी था और जिसका नाम उन्होंने ‘विद्याधर' रखा था। यह ग्रंथ ग्रंथ आनंदपुर की लड़ाई के अनंतर उनके दक्षिण की ओर जाते समय मार्ग की किसी नदी में प्रवाहित हो गया जिसके कारण उन्हें मार्मिक कष्ट पहुंचा।
इस काल के दो संतों आर्थात् दुखहरण एवं वरनीदास द्वारा प्रेम कहानियों का भी लिखा जाना बतलाया जाता । है । बाबा घरनीदास का प्रेम प्रगासश्रेय तथा संत दुखहरण की 'मृहपावती' अभी तक प्रकाशित नहीं हैं, किंतु दोनों ही उपलब्ध हैं । इनकी रचनाशैली सूफी प्रेम गाथाओं का बहुत कुछ अनुसरण करती हुई भी उनसे कई बातों में भिन्न जान पड़ती है । इन प्रबंध रचनाओं के अतिरिक्त फुटकर विषयों को लेकर भी कुछ पुस्तकें लिखी गई हैं जिनके उदा हरण में हम स्वरोदयविज्ञान संबंधी चरणदास एवं दरियावास की दो रचनाओं का उल्लेख कर सकते हैं । मध्ययुग के पूर्वार्द्ध काल वाले बहुपुस्तकी लेखकों में हम जहां केवल अर्जुनदेवनानकदेव तथा मलूकदास के ही नाम ले सकते हैं वहां उत्तरार्द्ध काल बालों में रज्जवजी, सुंदरदास, तुरसीदास, गुरुगोविद सिंहगरोबदास, चरणदास, दरियावास एवं रामचरण को गिना सकते हैं । काव्यकला में निपुण होने की दृष्टि से भी इस काल के कवियों की संख्या उस काल वालों से