पृष्ठ:संत काव्य.pdf/३९४

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मधग (उत्तरार्द्ध ) ३८१ अनगोली पहुंचे पहलपोछे शब्द अवाज ॥ यूं करणी कथनी लगी, तिन सी का 1६५। व वा न शायद स नि श्वान का, बिन देखे भुसि देय । । स्यूरज्जब साखी संबद, के केवि चिदख नह लेय 1६६। कूरम श्रीबागल गिराप्रक्ट पत्त जंत। साधु शल मिसे सु ), ज्यू रज्जब गजदंत ६७। । अभ् सुन्दरि सर हावत, अशरण शरें उतारि है स् रन शाह रनि रम जलस्वांग शह डार ।६८। शूगर सहित अथवा रहितपप्त परसे सूत होय ॥ रजर्थ मिणि बने, फल पाई वह कैंथ १६e।। साधुस्वभाव साबू सोप सरोजगति, तकरित सल में पड़ा ॥ पुट हैं और विशि, प्राथ और दिक्षित आा 41७०!। शब्द-महिमा सकल ए तार शछ द का, शब्द क्षल घट मtहैं । रऊ में पत्र पा रन की, श६ सुर भारी हैि १७१। घट दर्शा िक ख जक, सय शब्द के ईि ॥ ऊम रजब शपति सहित, बाहुत्रि दो माह १७२)। साधु श. 5इ डूगर थे, भाद पर बिग बात है। रज्जब टांको झाम बिमकोई तो न जगत १७३१। नाकसंस्कृत बीजरूष कछु और था, वृक्ष्प गया और ॥ क्यों प्रतिवें संस्कृत, रज्जक कक्षा ब्यौर १७४। (६५) सी=सिद्ध होते हैं? (६८) न्हावता =स्म क रत समय।