मध्ययुग (उतब्दु) ३८७ कहि कहि संत सर्वे को हो, अब सुंदर का कहै बिचारा ।४। अनल पंईि-=एक पक्षी जो सदा आकाश में ही उंड़ा करता है, वहीं अंडा देता है जो पृथ्वी पर आने से पहले ही छूट जाता है और बच्चा भी उड़ जाता है । अनिर्वचनीय आया (३) ख्याली तेरे ख्याल का, कोई अंत न पावे। कब का खेल पसारिया, कछ कहल न आवै ।टेका ज्य याँ का याँ हो दे ख़ि ये रन संसार। सरिता नोर प्रवाह ज्यों, नह खंडित धारा 1१। दीप जरत त्यौं छथे, मैं का कैसा। को जाने केला गया, जण पदक ऐसा ए२हैक जैसे चक्र बुलाल का, फिरता बहू दी।। और छा ईि कलहूं न गथा, यह बिसवा बीस ॥३। प्रगट कर उषता कर, धट थ्छष्ठ अटा । सूम्बर घटत न देखिये, यह अरिज मोटा ।४५है कुनालगुप्वार। मुक्तिस्वुरूप (४) मंधित तो धोधे को नीसामने। सो कतईं वह ठौर ठिकाना, जहां पुक्ति ठहरानी भ।टेक। को की मुक्ति व्योम के अपर, को पाताल के सiहो । को कहे मुक्ति रहै पृथो पर, तो कई नाहों ।१। बेचन विचार न कोया किनहूं, सुनि सुनि डछेि थाये। गोवंडा ज्यों सर ग चाले, आगे पड़े बिलाये ११२। जीवत कष्ट करे बहुतेरे, मुये मुक्ति कहे जाई। घोघंह धोखे सब भूलेमार्ग अवा बाई 1३। निज स्वरूप काँ जानि अखंडित, ज्यों का स्पही रहिये। सुन्दर क6 प्रह नहि त्यागे, वह मुबिस पद कहिये ? ।
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