पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३९२ काय प्रकाश है तो फिर उसका उपाधिमें आना कैसा ?ब्रिधा==निवर निर्णय। (१५) सराव =दीपक का पात्र 1 जोये =देखे जाते हैं। कवित से यह मेरी गेह में परिवार सब मेरी धन साल में ताँ बहुबिधि भारी ह। मे सब सेवक हुकम कोड मेटे नाहि, मेरी जबतीक में तो अधिक प्रयाएं ही है। मेरी चंश ऊंची रे बाप दादा ऐसे भये, करत बड़ाई में तौ जगत उज्यारे हों। सुन्दर कहस मेसे मेरी करि ज जांने सद, ऐसी नहीं जांचे में तो काल ही कौ वे हौं 1१५ जा शरीर महि द अनेक सुख मांनि रही, ताही विचारि यामें कौन बात भली है। मेद मज्जा मांस रग रगनि महि रकत पेट टू पिटारी सी में जैौर पर सली है । हाउनिस मुख भयौ हाड़ ही क नैन नांक, हाथ पांव सोल सब हाही को नस्ली है । सुन्दर कहत याहि घि जिनि भूलें कोड़, भीतरि भंगार भरि अपर मैं कली है ।२॥ पलूही में सरिजत पलु ही में जोचत है , । पलुही में परहथ देषत विकांन है। पलुही में फिर नवखंडहु ब्रह्मड सब देश्यौ अनदेयौ जुत यादें नह छानों है । जात नहीं जाधनियत अधतो न दीम कालू, ऐसी सी बलाइ अब शार्ग परची पांत है। न