पृष्ठ:संत काव्य.pdf/४०८

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मध्ययुग (उत्तरार्द्ध) ३६ संत यारी साहब यारी साहब का पूर्व संबंध किसी शाही घराने से बतलाया जाता है और अनुमान किया जाता है कि ये पहले सूफ़ी भी रह चुके होंगे । इनका पूर्व नाम यार मुहम्मद था और अपने ऐश्वर्यमय जीवन का परि त्याग कर ये फ़क़र , ने ये । आगे चल कर ज व इनका सरग बोर साहब के साथ हुआ तो ये संतमत में भी दक्षित हो गए और यारी साहब के नाम से प्रसिद्ध हो चले। इनके जीवन की घटनाओं का अधिक विवरण नहीं पाया जाता और न इनके जीवनकाल का हो ठीक पता चलता है । इनके आकि भवि का समय, बोध रो-को वंशावाली के अनुसार, विक्रम को १८ वीं शताब्दों का पूर्वार्द्ध समझ पड़ता । है । इनकी समाधि का दिल्ली नगर में आज तक वर्तमान होना बतलाया जाता है और वहीं पर इनके निवासस्थान का भी अदू मान होता है । इनके चार चेले अर्थात् केशवदा त, सूफ़ोशीह, लेखन शाह और हस्म मुहम्मद भी कहीं उसी ओर के रहने वाले थे। इनक पांचवे शिष्य बना साहब भुरकुडा, जिला गाजीपुर के निवासी थे जहां इ स पंथ की एक गद्दी अभी तक प्रतिष्ठित है । यारी साहब की रचनाओं का एक छोटा-सा संग्रह ‘ग्नावली' नाम से प्रसिद्ध है। इनके शुछ अन्य पद भो भिन्नभिन्न संग्रहों में मिलते हैं जिनसे जान पड़ता है कि इनकी आध्यात्मिक पहुंच बढ़त चकोटेि की रही होगी । इनक्री पंक्तियों में तल्लीनता एवं निद्रता के भाव विशेष रूप से लक्षित होते हैं और अनुमान होता है कि ये सदा किसी ऊँचे भावस्तर से कहा करते हैं। इनकी भाषा में फ़ारमी एवं अरबी के शब्द अधिक संख्या में आते हैं और इनकी वर्णनशैली का मस्ताना- पन सी इनका मुफियों द्वारा बहुत कुछ प्रभावित होना सिद्ध करता